Hindi, asked by RakshaDeeku479, 1 year ago

Bharat Pragati ke path par Bharat Pragati ke path par par anuched

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Answered by navu123
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पिछले कुछ दशकों में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आने-जाने वाले दैनिक यात्रियों की संख्या में जबर्दस्त वृद्धि हुई है. इसमें छोटे-मोटे काम करने वाले कामगारों की सेवा का वह क्षेत्र भी शामिल है जिनके काम का कोई पक्का ठिकाना नहीं होता. ये लोग जोखिम उठाकर भी काम पर जाते हैं और यह मानते हैं कि आप्रवासन अब पुरानी बात हो गई है और दैनिक यात्रा उनके लिए खिलवाड़ बन गई है, लेकिन अब समय आ गया है कि ऐसे श्रमिक जो एक-से अधिक बार कहीं आते-जाते हैं, आप्रवासन-केंद्रिक हो गए हैं.ऐसे आप्रवासियों में दैनिक यात्री भी शामिल हैं. 

ग्रामीण-शहरी, शहरी- ग्रामीण और उन दैनिक यात्रियों को भी मिलाकर जिनके काम का कोई पक्का ठिकाना नहीं होता, 1993-94 और 2009-10 के दौरान दैनिक यात्रियों की संख्या में लगभग चार गुना वृद्धि हुई है और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आने-जाने वाले दैनिक यात्रियों की संख्या 6.34 मिलियन से बढ़कर 24.62 मिलियन  हो गई है. रोज़गार और बेरोज़गारी से संबंधित ये अनुमानित आँकड़े राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के सर्वेक्षण पर आधारित हैं. आश्चर्यजनक बात तो यह है कि इस वृद्धि पर नियमित रूप में नज़र रखी जा रही है. इन अनुमानित आँकड़ों में वे यात्री शामिल नहीं हैं, जो व्यक्तिगत स्तर पर गाँवों से होते हुए ग्रामीण इलाकों के अंदर या फिर शहरों के ही भीड़-भाड़ वाले इलाकों के अंदर (जैसे मुंबई के महानगरीय क्षेत्र के पाँच ज़िलों के अंदर) या शहरों से गुज़रते हुए (जैसे बर्धमान से हावड़ा के बीच) या राज्यों से गुज़रते हुए आते–जाते हैं, जैसा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में देखा जा सकता है. साफ़ तौर पर कहा जाए तो भारत के बड़े-बड़े शहरों के भीड़-भाड़ वाले इलाकों में काम के ठिकाने पर आने-जाने के लिए जो समय लगता है या फिर जितनी दूरी तक आना-जाना होता है, उसकी चर्चा तो सार्वजनिक बहसों के दौरान होती है, लेकिन उसके कोई आँकड़े नहीं रखे जाते. यही कारण है कि इसके परिमाण को प्रमाणित नहीं किया जा सकता.



इस बात की संभावना लगातार बढ़ रही है कि यदि लोगों को विकल्प उपलब्ध हो तो वे आप्रवासन के बजाय दैनिक यात्रा अधिक पसंद करेंगे. क्या कारण है कि लोग आप्रवासन के बजाय दैनिक यात्रा पसंद करते हैं? जिन प्रमुख कारणों से लोग आप्रवासन के बजाय दैनिक यात्रा पसंद करते हैं, उन्हीं कारणों से दैनिक यात्रा को भी लोग नापसंद कर देंगे : ग्रामीण भारत में और छोटे कस्बों में रोज़गार की कमी; शहर की सीमा के ठीक बाहर रोज़गार के अवसरों में बढ़ोतरी; ग्रामीण और शहरी मज़दूरी में अंतर; और औपचारिक (अनौपचारिक) निर्माण क्षेत्र का शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में और ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरण. ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों की दृष्टि से चूँकि ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के लाभों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया नहीं जा सकता, इसलिए यदि संभव हो तो आप्रवासन की तुलना में दैनिक यात्रा का आकर्षण कहीं अधिक है. शहरी निवासी आप्रवासन की तुलना में दैनिक यात्रा अधिक पसंद करते हैं, क्योंकि शहरी क्षेत्रों में सुविधाएँ ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले कहीं अधिक होती हैं. 

जहाँ तक कामगारों के आवागमन का सवाल है, हम किसी भी बातचीत में दैनिक यात्रा को आप्रवासन के समकक्ष ही रखते हैं, क्योंकि इन दोनों में से कोई एक अब मात्र पसंद का सवाल नहीं रहा. नई दिल्ली स्थित मानव विकास संस्थान  ने पाया है कि चंदकुला (बिहार की राजधानी के पास के एक गाँव) में दैनिक यात्रा अधिक महत्वपूर्ण है, जबकि मनिशम ( जो बड़े शहर के नज़दीक नहीं है) में लोग आप्रवासन को अधिक पसंद करते हैं, चंदकुला में कामगार हर रोज़ तीस कि.मी. तक यात्रा करते हैं, जबकि मनिशम में कामगार गाँव के एक किनारे तक ही जाते हैं. चंदकुला के लगभग 25 प्रतिशत पुरुष कामगार आप्रवासन के बिना ही स्थानीय शहरी श्रम बाज़ार का लाभ उठा सकते हैं.


इंदिरा गाँधी विकास अनुसंधान संस्थान के एक अनुसंधानकर्ता अजय शर्मा द्वारा प. बंगाल के कुछ गाँवों में किये गये एक सर्वेक्षण में पाया गया कि औसतन कोई भी कामगार 28 कि.मी. तक एक तरफ़ की दैनिक यात्रा करता है और इस यात्रा पर उसका खर्च 300/- रु.तक आता है. आधे कामगार तो एक ही तरह की सवारी का इस्तेमाल करते हैं, 15 प्रतिशत कामगार दो तरह की सवारियों का इस्तेमाल करते हैं और शेष कामगार तीन तरह की सवारियों का इस्तेमाल करते हैं. जो सवारी सबसे अधिक इस्तेमाल की जाती है , वह है साइकिल. दो तरह की सवारियों का इस्तेमाल करने वाले कामगार पहली सवारी के रूप में रेलगाड़ी या फिर अपने वाहन का इस्तेमाल करते हैं और फिर बस से यात्रा करते हैं. तीन तरह की सवारियों का इस्तेमाल करने वाले कामगारों ने बताया कि वे अपने घर से साइकिल से निकलते हैं, फिर रेलगाड़ी में बैठते हैं और फिर अंततः अपने कार्यस्थल पर बस या साइकिल से या फिर पैदल ही जाते हैं.  


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