Hindi, asked by kotechamanav870, 3 months ago

भरत के चरित्र को तुलसीदास बाहर से नहीं, भीतर से सँवारते हैं, उसे बड़ी सहजता और स्वाभाविकता से उभारते
। जैसे राम का नामस्मरण सुखदायी है, उसी तरह भरत का नाम पवित्र बनानेवाला है। इसका कारण साफ है, भरत राम
को प्राणों से भी प्रिय है। जिसे राम प्रिय हों वह महान बन जाता है, किन्तु जो राम को प्रिय हो उसकी महानता का कहना
ही क्या? भरत में दोनों गुण घुले-मिले हैं। राम तो उन्हें प्रेम करते ही हैं, साथ ही साथ भरत भी राम से प्रेम करते हैं।
जो राम को प्रिय हो या जिसे राम प्रिय हो, उस पर कोई आक्षेप लगाना या उसके बारे में कुछ अनुचित बोलना राम का
अपमान होगा। इससे सत्कर्म तो नष्ट होंगे ही, पाप भी बढ़ेगा। धर्म का मूलाधार यह है कि जब भक्त प्रभुमय हो जाता
है तब उसके संपूर्ण चरित्र में प्रभुता प्रकाशित हो उठती है।

47. भरत में कोन-से गुण घुले-मिले हैं?
48. धर्म का मूलाधार क्या है?
49. राम का अपमान कब होगा?
50. सत्कर्म किस प्रकार नष्ट होंगे?
51. भरत के चरित्र को तुलसीदासजी ने कैसे संवारा है?
52. इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।​

Answers

Answered by shishir303
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दिए गए गद्यांश पर आधारित प्रश्न इस प्रकार हैं...

47. भरत में कोन-से गुण घुले-मिले हैं?

भरत में दो गुण घुले मिले हैं, अर्थात उन्हें राम प्रेम करते हैं, और वे राम को प्रेम करते हैं।

48. धर्म का मूलाधार क्या है?

धर्म का मूलाधार यह है कि जब भक्त प्रभुमय हो जाता  है, तब उसके संपूर्ण चरित्र में प्रभुता प्रकाशित हो उठती है।

49. राम का अपमान कब होगा?

जो राम को प्रिय हो या जिसे राम प्रिय हो, उस पर कोई आक्षेप लगाना या उसके बारे में कुछ अनुचित बोलना राम का  अपमान होगा।

50. सत्कर्म किस प्रकार नष्ट होंगे?

राम का अपमान करने से सत्कर्म नष्ट होंगे अर्थात राम या राम को प्रिय व्यक्ति का अपमान करने सत्कर्म नष्ट होंगे।

51. भरत के चरित्र को तुलसीदासजी ने कैसे संवारा है?

भरत के चरित्र को तुलसीदास बाहर से नहीं, भीतर से भी सँवारा हैं।

52. इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।​

➲ इस परिच्छेद का उचित शीर्षक होना चाहिये...

....भरत के राम

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

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