Hindi, asked by raushanikumari21098, 11 months ago

Bharatendu ki kavyagat visheshta​

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Answered by mrarjun
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Explanation:

भारतेंदु युग ने हिंदी कविता को रीतिकाल के शृंगारपूर्ण और राज-आश्रय के वातावरण से निकाल कर राष्ट्रप्रेम, समाज-सुधार आदि की स्वस्थ भावनाओं से ओत-प्रेत कर उसे सामान्य जन से जोड़ दिया।इस युग की काव्य प्रवृत्तियाँ निम्नानुसार हैं:-

1. देशप्रेम की व्यंजना :अंग्रेजों के दमन चक्र के आतंक में इस युग के कवि पहले तो विदेशी शासन का गुणगान करते नजर आते हैं-

परम दुखमय तिमिर जबै भारत में छायो,

तबहिं कृपा करि ईश ब्रिटिश सूरज प्रकटायो॥

किंतु शीघ्र ही यह प्रवृत्ति जाती रही।मननशील कवि समाज राष्ट्र की वास्तविक पुकार को शीघ्र ही समझ गया और उसने स्वदेश प्रेम के गीत गाने प्रारम्भ कर दिए-

बहुत दिन बीते राम, प्रभु खोयो अपनो देस।

खोवत है अब बैठ के, भाषा भोजन भेष ॥

(बालमुकुन्द गुप्त)

विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार,ईश्वर से स्वतंत्रता की प्रार्थना आदि रूपों में भी यह भावना व्यक्त हुई।इस युग की राष्ट्रीयता सांस्कृतिक राष्ट्रीयता है, जिसमें हिंदू राष्ट्रीयता का स्वर प्रधान है।

देश-प्रेम की भावना के कारण इन कवियों ने एक ओर तो अपने देश की अवनति का वर्णन करके आंसू बहाए तो दूसरी ओर अंग्रेज सरकार की आलोचना करके देशवासियों के मन में स्वराज्य की भावना जगाई। अंग्रेजों की कूटनीति का पर्दा फाश करते हुए भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लिखा-

सत्रु सत्रु लड़वाइ दूर रहि लखिय तमाशा।

प्रबल देखिए जाहि ताहि मिलि दीजै आसा॥

इसी प्रकार जब काबुल पर अंग्रेजों की विजय होने पर भारत में दिवाली मनाई गई तो भारतेंदु ने उसका विरोध करते हुए लिखा -

आर्य्य गनन कों मिल्यौ, जो अति प्रफुलित गात।

सबै कहत जै आजु क्यों, यह नहिं जान्यौ जात॥

सुजस मिलै अंग्रेज को, होय रूस की रोक।

बढ़ै ब्रिटिश वाणिज्य पै, हमको केवल सोक॥

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