Bharatiya sambhandhit shilpkala ki
jankari
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भारतीय शिल्प की लंबी और प्राचीन परंपरा है। इसका आशय है कि यहां हमेशा रचनात्मक और कल्पनाशील लोग हुए हैं, जिन्होंने समस्याओं के समाधान के बहुत रोचक तरीके खोजे। शिल्पकला कार्यकर्ता (craft activist) जया जेटली ने अपनी पुस्तक ‘विश्वकर्माज चिल्ड्रेन - इंडियाज क्राफ्ट्स पीपुल’ में लिखा है कि,
भारत के शिल्प और शिल्पकार यहां की लोक एवं शास्त्रीय परंपरा का अभिन्न अंग हैं। यह ऐतिहासिक समांगीकरण (Historical Assimilations) कई हजार वर्षों से विद्यमान है। कृषि अर्थव्यवस्था में आम लोगों और शहरी लोगों, दोनों के लिए प्रतिदिन उपयोग के लिए हाथों से बनाई गई वस्तुएं शिल्प की दृष्टि से भारत की सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाती हैं। हालांकि शिल्पकार लोगों को जाति प्रथा के ढांचे में बांटा गया, लेकिन उनके कौशल को सांस्कृतिक और धार्मिक आवश्यकताओं द्वारा प्रोत्साहित किया गया एवं स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा इसे गति प्रदान की गई।
आज भी भारत में हस्तशिल्प आय का वैकल्पिक स्रोत है और कई समुदायों की अर्थव्यवस्था का आधार भी।