Hindi, asked by ilaashukl, 1 year ago

bhartiya nari ka mahatva

Answers

Answered by AbsorbingMan
32

                                भारतीय नारी का महत्व  

नारी समाज का आधार होती है । समाज के निर्माण में नारी की मुख्यभूमिका होती है । हमारे ग्रंथो की माने तो नारी को आदमी की सहधर्मचारिणी कहा जाता है । नारी को भी समाज में पुरषों सामान मजबूत आधार स्तंभ मन गया है ।  

पुरातन काल से ऐसा कहा जाता था जहां नारी की पुजा होती है वहीं देवगण निवास करते हैं।परन्तु ऐसा जानते हुए भी नारी के साथ अन्याय और शोषण में कमी नहीं आया इसके उत्तर में कहाँ जा सकता है कि हम पूर्णतः अपनी संस्कृति और सभ्यता का त्याग कर चुके हैं।जिसके चलते हम नारी के अन्दर विद्यमान गुणों को समझने में कठिनाईओं का सामना करना पड़ रहा है।बहुत युगो तक हमारे देश की नारीया अशिक्षा और अज्ञान के अंधकार में भटक रही थी।

नारी ने तो स्वप्न देखना भी छोड़ चूंकि थी कि कभी हम शिक्षित भी हो सकती है।नारी आज से ही नहीं बल्कि प्राचीन काल से ही सम्मान की पात्र मानीं गई है परन्तु हमारे समाज वाले यह समझना छोड़ दिये कि नारी परम मित्र एवं सलाह की प्रति मूर्ति है।यह पति के लिए दासी के समान सेवा करने वाली और माता के समान जीवन देने वाली होती है।

आज के इस नये युग में नारी चाहे कितनी ही शुशिल क्यों न हो लेकिन उनमें शिक्षित होना जरूरी है।अगर आज की नारिया शिक्षित न हो तो उसका इस युग में कोई ताल मेल नहीं माना जाएगा।हमारा यह नया युग पूराने युग को बहुत पिछे छोड़ गया है।जिसके चलते नारीयों में सहनशीलता के साथ -साथ शिक्षा भी विद्यमान होनी चाहिये।

आज नारियाँ पर्दा को त्याग चुकी है क्योंकि आज परिवेश में अगर नारी शिक्षित न हो तो उसका इस युग में कोई ताल मेल नहीं माना जायेगा।आज अशिक्षित नारी को महत्वहीन समझा जाता है।इसलिए समाज का हर एक व्यक्ति अपने बेटियों और बहुएं को शिक्षित बनाना अपना परम कर्तव्य समझ रहा है।


Answered by Anonymous
4

Answer:

नारी सृष्टि का प्रमुख उद्‌गम स्रोत है । नारी के अभाव में समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती । सृष्टि सृजन से ही नारी का अस्तित्व रहा है । देव से लेकर मानव तक नारी ही जन्मदात्री रही है । बिना नारी के पुरुष अधूरा है । नारी के अभाव में घर-घर नहीं होता ।

चारदीवारी से घिरा घर घर नहीं कहा जाता । नारी इसका प्रमुख आधार है । विश्व में नारी का महत्व क्या रहा है यह तो एक विचारणीय विषय है । इस पर एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है । मानव सृष्टि में पुरुष और नारी के रूप में आदि शक्ति ने दो अपूर्ण शरीरों का सृजन किया है । एक के बिना दूसरा अपंग है । दोनों एक दूसरे के पूरक हैं अथवा समाज रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं ।

पुरुष को सदैव से शक्तिशाली माना जाता रहा है और स्त्री को अबला नारी । यही कारण है कि नारी को बेचारी, अबला आदि कहकर पीछे छोड़ दिया जाता है । नारी को तो अर्द्धांगिनी कहा जाता है, किन्तु पुरुष रूपी समाज का ठेकेदार अपने को अर्द्धांग कहने से कतराता है ।

किसी भी ग्रन्थ में पुरुष को अर्द्धांग कहकर परिचय नहीं कराया गया है जो कि नारी के महत्व को कम करता है । 

Similar questions