Hindi, asked by mohakgupta2005, 4 months ago

Bhartiya nari pr anuched

Answers

Answered by Anonymous
1

Answer:

Explanation:

प्राचीन काल में हमारे समाज में नारी का महत्व नर से कहीं बढ़कर होता था। किसी समय तो नारी का स्थान नर से इतना बढ़ गया था कि पिता के नाम के स्थान पर माता का ही नाम प्रधान होकर परिचय का सूत्र बन गया था। धर्म द्रष्टा मनु ने नारी को श्रद्धामयी और पूजनीया मानते हुए महत्व प्रदर्शित किया-

‘यत्रनार्यस्तु पूज्यते, रभन्ते तत्र देवताः।’

अर्थात् जहाँ नारी की पूजा प्रतिष्ठा होती है, वहाँ देवता रमण करते हैं, अर्थात् निवास करते हैं।

धीरे धीरे समय के पटाक्षेप के कारण नारी की दशा में कुछ अपूर्व परिवर्तन हुए। वह अब नर से महत्वपूर्ण न होकर उसके समकक्ष श्रेणी में आ गई। अगर पुरूष ने परिवार के भरण पोषण का उत्तरदायित्व सम्भाल लिया तो घर के अन्दर के सभी कार्यों का बोझ नारी ने उठाना शुरू कर दिया। इस प्रकार नर और नारी के कार्यों में काफी अन्तर आ गया। ऐसा होने पर भी प्राचीन काल की नारी ने हीन भावना का परित्याग कर स्वतंत्र और आत्मविश्वास होकर अपने व्यक्तित्व का सुन्दर और आकर्षक निर्माण किया। पंडित मिश्रा की पत्नी द्वारा शंकराचार्य जी के परास्त होने के साथ गार्गी, मैत्रेयी, विद्योत्तमा आदि विदुषियों का नाम इसी श्रेणी में उल्लेखनीय है।

समय के बदलाव के साथ नारी दशा में अब बहुत परिवर्तन आ गया है। यों तो नारी को प्राचीनकाल से अब तक भार्या के रूप में रही है। इसके लिए उसे गृहस्थी के मुख्य कार्यों में विवश किया गया, जैसे- भोजन बनाना, बाल बच्चों की देखभाल करना, पति की सेवा करना। पति की हर भूख को शान्त करने के लिए विवश होती हुई अमानवता का शिकार बनकर क्रय विक्रय की वस्तु भी बन जाना भी अब नारी जीवन का एक विशेष अंग बन गया।

शिक्षा के प्रचार प्रसार के फलस्वरूप अब नारी की वह दुर्दशा नहीं है, जो कुछ अंधविश्वासों, रूढि़वादी विचारधारा या अज्ञानता के फलस्वरूप हो गयी थीं। नारी को नर के समानान्तर लाने के लिए समाज चिन्तकों ने इस दिशा में सोचना और कार्य करना आरंभ कर दिया है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने इस विषय में स्पष्टता ही कहा है-

‘एक नहीं, दो दो मात्राएँ, नर से बढ़कर नारी।’

नारी के प्रति अब श्रद्धा और विश्वास की पूरी भावना व्यक्त की जाने लगी है। कविवर जयशंकर प्रसाद ने अपनी महाकाव्यकृति कामायनी में लिखा है-

नारी! तुम केवल श्रद्धा हो,

विश्वास रजन नग, पग तल में।

पीयूष स्रोत सी बहा करो,

जीवन के सुन्दर समतल में।।

अब नारी की स्थिति वह नहीं रह गयी है-

‘नर को बाँटे क्या, नारी की नग्न मूर्ति ही आई।’

नारी आज समाज में प्रतिष्ठित और सम्मानित हो रही है। वह अब घर की लक्ष्मी ही नहीं रह गयी है अपितु घर से बाहर समाज का दायित्व निर्वाह करने के लिए आगे बढ़ आयी है। वह घर की चार दीवारी से अपने कदम को बढ़ाती हुई समाज की विकलांग दशा को सुधारने के लिए कार्यरत हो रही है। इसके लिए वह नर के समानान्तर पद, अधिकार को प्राप्त करती हुई नर को चुनौती दे रही है। वह नर को यह अनुभव कराने के साथ साथ उसमें चेतना भर रही है। नारी में किसी प्रकार की शक्ति और क्षमता की कमी नहीं है। केवल अवसर मिलने की देर होती है। इस प्रकार नारी का स्थान हमारे समाज में आज अधिक सायादूत और प्रतिष्ठित है।

HOPE IT HELPS....!!!! DON'T FORGET TO MARK ME THE BRAINLIEST

Similar questions