bhartiya samaj me jaati ki bhoomika ka ankalan
Answers
जाति-प्रथा हिन्दू समाज की एक प्रमुख विशेषता है । प्राचीन समय पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि इस प्रथा का लोगों के सामाजिक, आर्थिक जीवन पर विशेष प्रभाव रहा है ।
वास्तव में समाज में आर्थिक मजबूती और क्षमता बढ़ाने के लिए श्रम विभाजन के आधार पर इस प्रथा की उत्पत्ति हुई थी । आरंभ में इस विभाजन में सरलता थी और एक जाति का व्यक्ति दूसरी जाति को अपना सकता था । परन्तु समय के साथ-साथ इस क्षेत्र में संकीर्णता आ गई ।
जाति प्रथा का प्रचलन केवल भारत में ही नहीं बल्कि मिस्र, यूरोप आदि में भी अपेक्षाकृत क्षीण रूप में विद्यमान थी । ‘जाति’ शब्द का उद्भव पुर्तगाली भाषा से हुआ है । पी. ए. सोरोकिन ने अपनी पुस्तक ‘सोशल मोबिलिटी’ में लिखा है, ”मानव जाति के इतिहास में बिना किसी स्तर विभाजन के, उसमें रहने वाले सदस्यों की समानता एक कल्पना मात्र है ।” तथा सी. एच. फूले का कथन है ”वर्ग-विभेद जब वंशानुगत होता है, तो उसे जाति कहते हैं ।”
इस विषय में अनेक मत स्वीकार किए गए है । राजनैतिक मत के अनुसार जाति प्रथा उच्च श्रेणी के ब्राह्मणों की चाल थी । व्यावसायिक मत के अनुसार यह पारिवारिक व्यवसाय से उत्पन्न हुई है । साम्प्रदायिक मत के अनुसार जब विभिन्न सम्प्रदाय संगठित होकर अपनी अलग जाति का निर्माण करते है, तो इसे जाति प्रथा की उत्पत्ति कहते है । परम्परागत मत के अनुसार यह प्रथा भगवान द्वारा विभिन्न कार्यो की दृष्टि से निर्मित की गई है ।
धन्यवाद