Bhartiya sanskriti mein tyohar ka kya mehtwa
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आज हमारी नई पीढ़ी में न तो त्योहारों के प्रति कोई आदर है न उनको अपनाने कि चाह. सामाजिक सदभाव को बढ़ाने व लोगों को निकट लाने में इनका बहुत योगदान रहा है.पर व्यक्तिगत स्वार्थों ने इनकी आधार शीला ही ख़तम कर दी. रही कसर राजनितिक नेताओं ने पूरी कर दी. धर्म जाति संप्रदाय के नाम पर लोगों में ऐसा अलगाव पैदा करने की कोशिश की है कि अब एक दूजे पर विश्वास करने को कोई तैयार नहीं.हमारे कठमुल्ले धार्मिक नेताओं के योगदान को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिन्होंने अपनी दुकाने चलाने के लिए धर्म के भी टुकड़े टुकड़े कर दिए ,व अपने अपने धड़े के नेता बन लोगों में घृणा व भेदभाव पैदा कर दिया जरूरत आज एक बार फिर इन त्योहारों को लोगों के दिलों में बसने की है. दिवाली दशहरा होली ईद क्रिसमस डे व राष्ट्रिय त्योहारों का महत्व बता लोगों को नजदीक लाने का प्रयास हम सभी को करना चाहिए.यह सभी की जिम्मेदारी है.