Social Sciences, asked by aliveaadi25, 6 months ago

Bhartiya sanvidhan Nirman doctor Rajendra Prasad ki bhumika ka ullekh Karen​

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Answered by shuchipatel06092004
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Answer:

'भारत रत्न' डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति हुए और उससे पहले वह संविधान सभा के अध्यक्ष थे. उनके नेतृत्व में ही संविधान तैयार किया गया. लेकिन उनके परिवार के सदस्य और विशेषज्ञ कहते हैं कि संविधान बनाने को लेकर राजेंद्र बाबू जितने सम्मान के हकदार थे, उतना उन्हें नहीं मिला. कई अन्य लोगों को राजेंद्र बाबू से ज्यादा सम्मान दिया गया और आज भी उनकी उपेक्षा की जा रही है.भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है. संविधान तैयार करने के लिए संविधान सभा का गठन किया गया था. संविधान सभा का गठन जुलाई 1946 में किया गया था, जिसमें कुल सदस्यों की संख्या 389 थी.संविधान बनाने को लेकर राजेंद्र बाबू जितने सम्मान के हकदार थे, उतना उन्हें नहीं मिला : वीडियो देखेंसंविधान सभा की प्रथम बैठक दिल्ली में ही 9 दिसम्बर, 1946 को हुई और उसमें सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थाई अध्यक्ष चुना गया. लेकिन दो दिनों बाद ही 11 दिसम्बर 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष चुने गये.संविधान सभा की कार्यवाही 13 दिसम्बर 1946 से शुरू हुई. लेकिन 1947 में योजना के अनुसार देश के विभाजन के बाद संविधान सभा में सदस्यों की संख्या 324 रह गयी. संविधान सभा का 31 अक्टूबर 1947 को पुनर्गठन किया गया और 31 दिसम्बर 1947 को सदस्यों की कुल संख्या 299 रह गयी.संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष,11 माह व 18 दिन लगे और इसमें लगभग 6.4 करोड़ रुपये खर्च हुए. संविधान के प्रारूप पर कुल 114 दिनों तक बहस हुई. संविधान को जब 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा द्वारा पारित किया गया, तब इसमें कुल 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं. लेकिन वर्तमान समय में संविधान में 25 भाग, 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं.संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी 1950 को हुई थी और उसी दिन संविधान सभा द्वारा डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया.बिहार से संविधान सभा में 36 लोगों को सदस्य बनाया गया था और सब एक से बढ़कर एक थे. हालांकि संविधान सभा के अध्यक्ष और संविधान तैयार करने में जिस सामंजस्य के साथ डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपनी विद्वता दिखायी, उसकी चर्चा इतनी नहीं हुई, जितनी होनी चाहिए थी.डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान निर्माण का श्रेय नहीं दिया गयाराजेंद्र बाबू की पोती तारा सिन्हा का कहना है कि इतिहास बदलने की तैयारी होती रही, लेकिन संविधान निर्माण में डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जो भूमिका थी, उसकी कभी चर्चा ही नहीं की जाती.तारा सिन्हा का यह भी कहना है कि राजेंद्र बाबू चाहते थे कि भारतीय संविधान को अंग्रेजी की तरह हिन्दी में भी आधिकारिक रूप से प्रस्तुत किया जाए, लेकिन वह नहीं हुआ. बाद में इसका हिन्दी सहित अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया.ये भी पढ़ें-खास बातचीत : कानूनविद् अश्विनी कुमार बोले - हमारी राजनीति संविधान के मूल्यों के अनुसार नहींएएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर का कहना है कि संविधान के निर्माण में डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जो योगदान है, उसे भुलाया नहीं जा सकता. लेकिन यह सच्चाई है कि संविधान निर्माण के लिए जितनी ख्याति उन्हें मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिली. डीएम दिवाकर के अनुसार संविधान निर्माण के लिए कई समितियां बनी थीं और डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सबको साथ लेकर चलने की अद्भुत क्षमता प्रदर्शित की थी. इसी कारण इतना अच्छा संविधान बनकर तैयार हुआ.ये भी पढ़ें -डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा : भारत के संविधान निर्माण में बहुमूल्य योगदानडॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पटना में बिहार विद्यापीठ की स्थापना की थी. विद्यापीठ में आज कई तरह की गतिविधियां हो रही हैं. विद्यापीठ में ही स्थित राजेंद्र संग्रहालय में 'भारत रत्न' सहित डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कई यादगार चीजें रखी हुई हैं.

संग्रहालय के अध्यक्ष मनोज वर्मा भी कहते हैं कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपना जो अंशदान किया, वह भूलने वाला नहीं है. डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति ही इतना अच्छा संविधान बना सकते थे और उन्होंने वह काम बखूबी किया. लेकिन उसके बाद जो सम्मान उन्हें मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला और यह हम सबके लिए पीड़ादायक है.जब भी संविधान की चर्चा होती है, संविधान निर्माण के रूप में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का नाम लिया जाता है और डॉ. राजेंद्र प्रसाद की चर्चा तक नहीं होती. लेकिन राजेंद्र बाबू ने संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में अपना जो अंशदान किया, वह बहुमूल्य है और चाह कर भी कोई उन्हें भुला नहीं सकता. संविधान सभा का संविधान निर्माण के साथ जो प्रमुख कार्य रहा, उसमें राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान और राष्ट्रीय गीत को अपनाया जाना भी था.

Explanation:

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Answered by prabhkaur06
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Upon independence in 1947, Prasad was elected as President of the Constituent Assembly of India, which prepared the Constitution of India and served as its provisional parliament. ... When India became a republic in 1950, Prasad was elected its first president by the Constituent Assembly.

1947 में स्वतंत्रता के बाद, प्रसाद को भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में चुना गया,

जिसने भारत के संविधान को तैयार किया और

इसकी अस्थायी संसद के रूप में कार्य किया। ...

जब 1950 में भारत एक गणतंत्र बना,

तो प्रसाद को संविधान सभा द्वारा अपना पहला राष्ट्रपति चुना गया।

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