Bhartiya shasan adhiniyam 1919 me prantiya sarkaro ko kon kon se mudde diye gye the
Answers
उत्तर :
ब्रिटिश संसद ने 1919 में भारत के औपनिवेशिक प्रशासन के लिये नया विधान बनाया जिसे भारत सरकार अधिनियम, 1919 के नाम से लागू किया गया। इस अधिनियम को ‘मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार’ भी कहा गया क्योंकि इस अधिनियम के पारित होने के समय मांटेग्यू भारत सचिव तथा चेम्सफोर्ड वायसराय थे। सरकार का दावा था कि उस अधिनियम की विशेषता ‘उत्तरदायी शासन की प्रगति’ है।
परंतु, इस अधिनियम में अनेक कमियाँ थी और यह भारतीयों की आकांक्षाओं को एक सिरे से नकारा रहा था यथा- इसमें भारतीयों के लिये मताधिकार बहुत सीमित था। केंद्र में कार्यकारी परिषद के सदस्यों का गवर्नर-जनरल के निर्णयों पर कोई नियंत्रण नहीं था और न ही केंद्र में विषयों का विभाजन संतोषजनक था। प्रांतीय स्तर पर प्रशासन का दो स्वतंत्र भागों में बँटवारा भी राजनीति के सिद्धांत व व्यवहार के विरूद्ध था। अधिनियम में ‘विषयों’ का जो ‘आरक्षित’ व ‘हस्तांतरित’ बँटवारा था, वह भी अव्यवहारिक था।
उस समय मद्रास के मंत्री रहे के.वी.रेड्डी ने व्यंग्य भी किया था- ‘मैं विकास मंत्री था किंतु मेरे अधीन वन विभाग नहीं था। मैं सिंचाई मंत्री था किंतु मेरे अधीन सिंचाई विभाग नहीं था।’ इस अधिनियम का एक महत्त्वपूर्ण दोष यह भी था कि इसमें प्रांतीय मंत्रियों का वित्त और नौकरशाही पर कोई नियंत्रण नहीं था। नौकरशाही मंत्रियों की अवहेलना तो करती ही थी, कई महत्त्वपूर्ण विषयों पर मंत्रियों से मंत्रणा भी नहीं की जाती थी। इस सभी दोषी के कारण हसन इमाम की अध्यक्षता में कांग्रेस के एक विशेष अधिवेशन ने इस अधिनियम को ‘निराशाजनक’ एवं ‘असंतोषकारी’ कहकर इसकी आलोचना की तथा प्रभावी स्वशासन की मांग की। महात्मा गांधी ने इन ‘सुधारों’ को भविष्य में भी भारत के आर्थिक शोषण तथा उसे परतंत्र बनाये रखने की प्रक्रिया का अंग बताया।
फिर भी, इस अधिनियम का भारत के सांविधानिक विकास के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस व्यवस्था से देश के मतदाताओं में मत देने की व्यावहारिक समझ विकसित हुई। इस अधिनियम द्वारा भारत में प्रांतीय स्वशासन तथा आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन की व्यवस्था की गई। केंद्र में जहाँ द्विसदनीय व्यवस्थापिका की व्यवस्था हुई, वहीं केंद्र की कार्यकारी परिषद में भारतीयों को पहले से तिगुना प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान था। एक विशेष परिवर्तन के तहत ‘भारत मंत्री’ के वेतन व भत्तों का भारतीय राजस्व के स्थान पर ब्रिटिश राजस्व से देने तथा एक नये पदाधिकारी ‘भारतीय उच्चायुक्त’ की नियुक्ति की भी घोषणा हुई।