Bhashan on self defence in hindi
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सेल्फ डिफेंस में कोई भी शख्स अगर अपराधी को पीटता है या फिर पीटने के कारण अपराधी की मौत हो जाए तो कानूनी प्रावधानों के तहत क्या बचाव है, बता रहे हैं राजेश चौधरी :
कानूनी जानकार बताते हैं कि सेल्फ डिफेंस का मतलब है कि कोई भी शख्स अपने शरीर या फिर अपनी प्रॉपर्टी को बचाने के लिए फाइट कर सकता है। लेकिन कानून कहता है कि कोई भी शख्स अपने बचाव में किसी और को उतना ही नुकसान पहुंचा सकता है जितना उसके बचाव के लिए जरूरी था।
जान का खतरा होना जरूरी
हाई कोर्ट के ऐडवोकेट नवीन शर्मा बताते हैं कि सेल्फ डिफेंस में अगर किसी पर गोली चलाई गई हो तो यह साबित करना होगा कि गोली चलाए बिना उसकी खुद की जान नहीं बच सकती थी। अगर कुछ अपराधी हथियारों के साथ किसी के घर में लूट अथवा चोरी के इरादे से घुसता है तो ऐसी स्थिति में निश्चित तौर पर घर के मालिक की जान को खतरा हो सकता है। ऐसी सूरत में घर का मालिक जान माल की रक्षा के लिए अपने लाइसेंसी हथियार से गोली चला सकता है और इस गोलीबारी में अगर किसी अपराधी की मौत हो जाए तो घर का मालिक अपने सेल्फ डिफेंस की दलील दे सकता है। तब अदालत यह देखेगी कि क्या वाकई अपराधी हथियारों से लैस थे। कानूनी जानकार बताते हैं कि अगर कोई सेंधमार चोरी के इरादे से घर में घुसता है तो ऐसी सूरत में उस पर गोली चलाना सेल्फ डिफेंस के दायरे से बाहर होगा क्योंकि ऐसी सूरत में उसे रोकने के लिए उसे डंडे आदि से पीटने पर भी बचाव हो सकता था।
डिफेंस में मौत भी माफ, लेकिन...
सुप्रीम कोर्ट के ऐडवोकेट डी. बी. गोस्वामी बताते हैं कि आईपीसी की धारा-96 के तहत सेल्फ डिफेंस की बात कही गई है। वहीं आईपीसी की धारा-97 के तहत बताया गया है कि प्रत्येक शख्स को शरीर और संपत्ति की रक्षा का अधिकार है और इसके लिए वह सेल्फ डिफेंस में अटैक कर सकता है। वहीं धारा-99 कहता है कि सेल्फ डिफेंस रीजनेबल होना चाहिए। यानी अपराधी को उतनी ही क्षति पहुंचाई जा सकती है जितनी जरूरत है। वैसे कानूनी जानकार गोस्वामी बताते हैं कि धारा-100 के मुताबिक सेल्फ डिफेंस में अगर किसी अपराधी की मौत भी हो जाए तो भी बचाव हो सकता है बशर्ते कानूनी प्रावधान के तहत ऐसा एक्ट किया गया हो। अगर गंभीर चोट पहुंचने का खतरा हो, रेप या फिर दुराचार का खतरा हो, अपराधी अगर अपहरण की कोशिश में हो तो ऐसी सूरत में सेल्फ डिफेंस में किए गए अटैक में अगर अपराधी की मौत भी हो जाए तो अपना बचाव किया जा सकता है। लेकिन यह साबित करना होगा कि उक्त कारणों से अटैक किया गया।
कानूनी जानकार बताते हैं कि सेल्फ डिफेंस का मतलब है कि कोई भी शख्स अपने शरीर या फिर अपनी प्रॉपर्टी को बचाने के लिए फाइट कर सकता है। लेकिन कानून कहता है कि कोई भी शख्स अपने बचाव में किसी और को उतना ही नुकसान पहुंचा सकता है जितना उसके बचाव के लिए जरूरी था।
जान का खतरा होना जरूरी
हाई कोर्ट के ऐडवोकेट नवीन शर्मा बताते हैं कि सेल्फ डिफेंस में अगर किसी पर गोली चलाई गई हो तो यह साबित करना होगा कि गोली चलाए बिना उसकी खुद की जान नहीं बच सकती थी। अगर कुछ अपराधी हथियारों के साथ किसी के घर में लूट अथवा चोरी के इरादे से घुसता है तो ऐसी स्थिति में निश्चित तौर पर घर के मालिक की जान को खतरा हो सकता है। ऐसी सूरत में घर का मालिक जान माल की रक्षा के लिए अपने लाइसेंसी हथियार से गोली चला सकता है और इस गोलीबारी में अगर किसी अपराधी की मौत हो जाए तो घर का मालिक अपने सेल्फ डिफेंस की दलील दे सकता है। तब अदालत यह देखेगी कि क्या वाकई अपराधी हथियारों से लैस थे। कानूनी जानकार बताते हैं कि अगर कोई सेंधमार चोरी के इरादे से घर में घुसता है तो ऐसी सूरत में उस पर गोली चलाना सेल्फ डिफेंस के दायरे से बाहर होगा क्योंकि ऐसी सूरत में उसे रोकने के लिए उसे डंडे आदि से पीटने पर भी बचाव हो सकता था।
डिफेंस में मौत भी माफ, लेकिन...
सुप्रीम कोर्ट के ऐडवोकेट डी. बी. गोस्वामी बताते हैं कि आईपीसी की धारा-96 के तहत सेल्फ डिफेंस की बात कही गई है। वहीं आईपीसी की धारा-97 के तहत बताया गया है कि प्रत्येक शख्स को शरीर और संपत्ति की रक्षा का अधिकार है और इसके लिए वह सेल्फ डिफेंस में अटैक कर सकता है। वहीं धारा-99 कहता है कि सेल्फ डिफेंस रीजनेबल होना चाहिए। यानी अपराधी को उतनी ही क्षति पहुंचाई जा सकती है जितनी जरूरत है। वैसे कानूनी जानकार गोस्वामी बताते हैं कि धारा-100 के मुताबिक सेल्फ डिफेंस में अगर किसी अपराधी की मौत भी हो जाए तो भी बचाव हो सकता है बशर्ते कानूनी प्रावधान के तहत ऐसा एक्ट किया गया हो। अगर गंभीर चोट पहुंचने का खतरा हो, रेप या फिर दुराचार का खतरा हो, अपराधी अगर अपहरण की कोशिश में हो तो ऐसी सूरत में सेल्फ डिफेंस में किए गए अटैक में अगर अपराधी की मौत भी हो जाए तो अपना बचाव किया जा सकता है। लेकिन यह साबित करना होगा कि उक्त कारणों से अटैक किया गया।
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