भय बिनु होए न प्रीति निबंध
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भय बिनु होय न प्रीति इसका अर्थ है डर के बिना प्यार नहीं होता जैसे मां अपने बेटे को कुछ सिखाने के लिए उसे डराती है
उसके जिद्दी पन को दूर करने के लिए उसे डराती है
उसके पश्चात उसे बहुत प्रेम करती है इसी तरह हमें भय बिनु होय न प्रीति यह कथन अटल है
धन्यवाद
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भय बिनु होए न प्रीति विषय पर निबंध निम्न प्रकार से लिखा गया है।
प्रस्तावना
डर तथा प्यार का आपस में गहरा संबंध है। आपको लगता होगा कि डर तथा प्यार दो विपरित बातें है , परन्तु जहां प्यार होता है ,वहीं डर भी होता है।
विस्तार
जो लोग भगवान से प्यार करते है वे लोग भगवान से डरते भी है और वह डर किस लिए होता है, वह डर धमकाने वाला नहीं होता परन्तु प्यार वाला होता है जिसे उस परमात्मा से प्यार होता है उसके लिए उस मालिक के प्रति डर भी होता है कि कहीं मुझसे कोई गलत काम न हो जाए, कोई पाप न हो जाए और मेरा खुदा मुझसे नाराज़ न हो जाए।
जितने भी संत महात्मा हुए है उन्हें भगवान का डर रहता है । मीराबाई श्री कृष्ण से इतना प्रेम करती थी, उनके मन में यह डर हमेशा रहता था कि कहीं श्री कृष्ण उन्हें छोड़कर न चले जाए।
एक बच्चा खेलते खेलते कुछ तोड़ देता है तो उसे डर लगता है कि कहीं मां नाराज़ न हो जाए।
पुराने जमाने में एक कहावत होती थी कि हमेशा दो गुणों इसकी स्त्री अपने पति को खुश रख सकती है एक तो उसके मन में अपने पति के लिए प्रेम होता है दूसरा पति के लिए डर होता है कि कहीं मुझसे ऐसा कोई काम न हो जाए जिससे मेरा पति नाराज़ न हो जाए।
इसलिए डर और प्रेम का आपस में गहरा संबंध है।