भयानक समस्या है. मूर्खों ने स्वार्थ के लिए साम्राज्य के गौरव का सर्वनाश करने का निश्चय कर लिया है. सच है, वीरता जब भागती है, तब उसके पैरों से राजनीतिक छलछन्द की धूल उड़ती है.
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भयानक समस्या है. मूर्खों ने स्वार्थ के लिए साम्राज्य के गौरव का सर्वनाश करने का निश्चय कर लिया है. सच है, वीरता जब भागती है, तब उसके पैरों से राजनीतिक छलछन्द की धूल उड़ती है।
✎... यह कथन जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ध्रुवस्वामिनी नाटक से संबंधित है। यह कथन नाटक की एक पात्र मंदाकिनी द्वारा उद्घाटित किया गया है
‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा रचित एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाला नाटक है। इस नाटक में चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त और ध्रुवस्वामिनी सबसे प्रमुख पात्र हैं, अन्य पात्रों में राम गुप्त मंदाकिनी सकहार जैसे पात्रों के नाम हैं
इस नाटक में लेखक ने नारी की प्रतिष्ठा सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। प्राचीन काल से ही परंपराओं के नाम पर इस समाज में नारी को एक केवल भोग की वस्तु समझा जाता रहा है। नारी के मन तथा भावनाओं का कोई महत्व नहीं समझा जाता था। नारी भी एक मानव होती है, कोई वस्तु नही, लेकिन पुरुष प्रधान समाज में नारी को केवल भोग की वस्तु समझा जाता रहा है।
ध्रुवस्वामिनी इस नाटक की प्रधान पात्र है।
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संबंधित कुछ और प्रश्न—▼
निम्न में से कौन-सा पात्र 'ध्रुवस्वामिनी' एकांकी का नहीं है
(अ) चन्द्रगुप्त
(ब) रामगुप्त
(स) शकराज
(द) शकहार
https://brainly.in/question/41842099
ध्रुवस्वामिनी में नारी की प्रतिष्ठा किस प्रकार सिद्ध हुई स्पष्ट कीजिए।
https://brainly.in/question/22638360
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