Bhayanak Ras ki paribhasha aur udaharan
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Explanation:
भयानक रस नौ रसों में से एक रस है। भानुदत्त के अनुसार, ‘भय का परिपोष’ अथवा ‘सम्पूर्ण इन्द्रियों का विक्षोभ’ भयानक रस है। भयोत्पादक वस्तुओं को देखने या सुनने से अथवा शत्रु इत्यादि के विद्रोहपूर्ण आचरण की स्थिति में भयानक रस उद्भुत होता है। हिन्दी के आचार्य सोमनाथ ने ‘रसपीयूषनिधि’ में भयानक रस की निम्न परिभाषा दी है-
‘सुनि कवित्त में व्यंगि भय जब ही परगट होय। तहीं भयानक रस बरनि कहै सबै कवि लोय’।
उदाहरण-
एक और अजगरहि लखी एक और मृगराय.
बिकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाए.
Answer:
भयानक रस – भयप्रद वस्तु या घटना देखने सुनने अथवा प्रबल शत्रु के विद्रोह आदि से भय का संचार होता है। यही भय स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है तो वहाँ भयानक रस होता है। “एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय। विकल बटोही बीच ही, परयों मूरछा खाय।।”
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