bhism pitamah introduction
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गंगापुत्र भीष्म महाभारत के महान नायको में से एक हैं. महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने कौरवों की ओर से युद्ध किया था. गंगा ने शांतनु से इस शर्त पर विवाह किया था कि उन्हें किसी भी कार्य से रोका नहीं जाएगा अन्यथा वह चली जाएगी. इसी वजह के तहत विवाह के बाद गंगा जन्म लेते ही अपने पुत्र को गंगा नदी में बहा देती थी. इसी तरह गंगा ने एक के बाद एक अपने सभी पुत्रों को गंगा नदी में बहा दिया. परंतु आठवें पुत्र में शांतनु से नहीं रहा गया और वह गंगा को रोक देते हैं. इस प्रकार वह अपना वचन तोड़ देते हैं. जब गंगा कहती है कि वह देवी गंगा है और पिछले जन्म में उनके सभी पुत्रों को श्राप मिला था और उन्हें श्राप मुक्त करने हेतु ही गंगा नदी में बहाया. लेकिन आठवें पुत्र को भी नदी में बहा रही थी परंतु आपने मुझे विवाह के दौरान दिया हुआ वचन तोड़ दिया इसलिए मैं अब जा रही हूं.गंगापुत्र भीष्म का जन्म माघ माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि के दिन हुआ था. भीष्म पितामह राजा शांतनु और गंगा के पुत्र थे. इनका वास्तविक नाम देवव्रत था. गंगा पुत्र भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की थी. जिससे उन्होंने अपनी मृत्यु को अपने अधीनस्थ कर लिया था. अपनी माता के वचन के कारण जब उनके पिता ने उन्हें नदी में बहाने से बचा लिया था तब गंगा भीष्म को अपने साथ ले गई थी और उन्होंने राजा से कहा कि जब वह 16 वर्ष के हो जाएंगे तब उन्हें वापस उन्हें सौंप देंगी. इस दौरान गंगा यह सुनिश्चित करेगी की एक अच्छा राजा बनने के लिए सच्ची शिक्षा मिले. गंगा अपने पुत्र भीष्म को लेकर चली गई. महाराज शांतनु उदासीन और हताश हो गए. और 16 साल बाद गंगा ने उनके पुत्र भीष्म को लाकर महाराज शांतनु को सौंप दिया.
भीष्म के गुरु भगवान परशुराम थे. देवव्रत ने परशुराम जी सही तीरंदाजी और बृहस्पति के वेदों का ज्ञान प्राप्त किया था. परशुराम जी ने उन्हें हर वह ज्ञान प्रदान किया था जो एक दायित्ववान राजा की जिम्मेदारियों के लिए जरूरी था.
भीष्म एक महान योद्धा थे. सभी अन्य योध्या उनसे युद्ध करने से डरते थे क्योंकि उन्हें हरा पाना असंभव था. किसी कारण भगवान परशुराम और भीष्म के बीच में भी एक बार युद्ध हुआ था. परंतु इस युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला. इस युद्ध में किसी की भी विजय नहीं हो रही थी. इस युद्ध से होने वाले नुकसान को देखते हुए भगवान शिव ने युद्ध को रोक दिया.देवव्रत ने अपनी सौतेली माता सत्यवती को वचनबद्ध किया था कि वे आजीवन अविवाहित रहेंगे और कभी भी हस्तिनापुर का नरेश नहीं बनेंगे अर्थात सिंहासन नहीं संभालेंगे. देवव्रत को भीष्म नाम उनके पिताजी द्वारा दिया गया था. देवव्रत ने अपने पिता को हस्तिनापुर के शासन के प्रति हमेशा ईमानदार और उसकी रक्षा और सेवा का वचन दिया था. देवव्रत की अपनी इसी प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ा. देवव्रत को उनके पिता शांतनु ने छ मृत्यु का वरदान दिया था. अर्थात हस्तिनापुर का सिहासन जब तक एक योग्य राजा के हाथों में नहीं छोड़ देते तब तक वह मृत्यु को प्राप्त नहीं करेंगे.