Bhumi aur shram me antar btaye
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भूमि -
भूमि हमारा मौलिक संसाधन है। ऐतिहासिक काल से हम भूमि से र्इंधन, वस्त्र तथा निवास की वस्तुएं प्राप्त करते आए हैं। इससे हमें भोजन, निवास के लिए स्थान तथा खेलने एवं काम करने के लिए विस्तृत क्षेत्र मिला है। यह कृषि, वानिकी, पशुचारण, मत्स्यन एवं खनन सामग्री के उत्पादन में प्रमुख आर्थिक कारक रहा है/
श्रम -
जब किसी बड़े कार्य को छोटे-छोटे तर्कसंगत टुकड़ों में बाँटककर हर भाग को करने के लिये अलग-अलग लोग निर्धारित किये जाते हैं तो इसे श्रम विभाजन (Division of labour) या विशिष्टीकरण (specialization) कहते हैं। श्रम विभाजन बड़े कार्य को दक्षता पूर्वक करने में सहायक होता है। ऐतिहासिक रूप से श्रम-विभाजन व्यापार की वृद्धि, सम्पूर्ण आउटपुट की वृद्धि, पूंजीवाद का उदय तथा औद्योगीकरण की जटिलता में वृद्धि से जुड़ा रहा है। परिष्कृत होकर धीरे-धीरे श्रम-विभाजन वैज्ञानिक प्रबन्धन के स्तर तक जा पहुँचा। मोटे तौर पर यह कार्यकारी-समाज है जिसके अलग-अलग भाग भिन्न-भिन्न काम करते हैं। जैसे- कुछ लोग कृषि करते हैं; कुछ लोग कुम्भकारी करते हैं और कुछ लोग लोहारी करते हैं। भारत की वर्णाश्रम व्यवस्था मूलत: श्रम-विभाजन का ही रूप है।
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