bibhatsa rasa poem in Hindi . plss fastttt
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ना सर्द हूँ, ना गीला हूँ, और ना दर्द होता है, पर
कल रात की घटना पर दिल चीत्कार कर रोता है
इतना 'बोझ' कि पसीने छूटते, उस बर्फ़ीली रात में
ढो रहा था सालों से 'जिसको', जग के इस उत्पात में
'एक नहीं कई राहें हैं', बस यही मान कर टालता रहा
दलदल में धंसता गया, और झूठा विश्वास पालता रहा
कल रात वो राहें एक-एक कर, बंद हो गयीं सारी
जीवन का हर बीतता पल लगा, पहाड़ से भी भारी
मुँह मोड़ कर रोशनी से, भंवर में ऐसा खो गया
असीम पीढ़ा का निश्चित अंत, कल रात ज़रूरी हो गया
ना सर्द हूँ, ना गीला हूँ, और ना दर्द होता है, पर
कल रात की घटना पर दिल चीत्कार कर रोता है
छाती पर चपेड पानी की, अंतर्मन झकझोर गयी
काले काल में मेरी काया, आह, पूर्ण जल-विभोर भयी
देखता हूँ, पत्नी को अपनी, जिस पर पहाड़ ये टूटेगा
सोचत- ा हूँ, उन सवालों का जवाब, अब कोई तो ढूंदेगा
बेट- ा इकलौता एक साल का, उससे तो करते नहीं बनेगा
पर जीवन से झूझती पत्नी को, सही राह का ही फलेगा
अब लगता है वह मंज़िल तो, इच्छा-शक्त�- � से मिलेगी
फाँस- कल रात के फ़ैसले की, जन्मों-जन्�- � तक खलेगी
काश इतना ही सोच लेता की, बर्फ सा ठंडा होगा पानी
जान की कीमत के आगे, हर दुख और पीढ़ा है बेमानी
तब आज नहीं तो कल, दुविधा का हल ढूँढ ही लेता
ना परिवार रुलता, ना खाते ठोकरें मेरे पत्नी औ बेटा
ना सर्द हूँ, ना गीला हूँ, और ना दर्द होता है, पर
कल रात की घटना पर दिल चीत्कार कर रोता है
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