Big essay on meri chah in hindi
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महिलाओं के लिए उचित सेवायें उपलब्ध करवाऊँ। ऐसी नीति बनवाऊँ जिससे प्रत्येक घर में नारी को उचित स्थान मिले। समाज में महिलाओं और पुरुषों को बराबर स्थान मिले और किसी का शोषण न हो, इसके लिए कार्य करूँ। समाज की समस्याओं को दूर करने का प्रयत्न करूँ।आशाओं की भीड़ में, चाह मेरी ख़ो गयी।
मंजिलों की चाह में, राह मेरी ख़ो गयी।।
आँख तो खुली मेरी, वैसे भी काफी देर से।
ज़िन्दगी मिली मुझे तब, सपनो के ढेर पे।
सपनों के संसार में, हर ख़ुशी मेरी ख़ो गयी।
आशाओं की भीड़ में, चाह मेरी ख़ो गयी।
आज भी याद है मुझे, वो महकता बचपन।
जिस वक़्त बढ़ाया था मैंने, ज़िन्दगी का पहला कदम।
कदमो की रफ़्तार में, चाल मेरी ख़ो गयी।
आशाओं की भीड़ में, चाह मेरी ख़ो गयी।
सोचा है मैंने अब, संघर्ष और करूँगा,
सबकी 'अपेक्षा' पर, मैं खरा उतरूंगा।।
जीवन के इस महासमर को, इक दिन जीत लूँगा।
जीत के इस सफर में, हार मेरी ख़ो गयी।
आशाओं की भीड़ में, चाह मेरी ख़ो गयी।
मंजिलों की चाह में, राह मेरी ख़ो गयी।।
हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
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