Hindi, asked by singh183, 1 year ago

big
 paropkar  ka mehtva

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Answered by Đïķšhä
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वस्तुत: निस्वार्थ भावना से दूसरों का हित-साधन ही परोपकार है। मनुष्य अपनी सामर्थय के अनुसार परोपकार कर सकता है। ूदसरों के प्रति सहानुभूति करना ही परोपकार है और सहानुभूति किसी भी रूप में प्रकट की जा सकती है। किसी निर्धन की आर्थिक सहायता करना अथवा किसी असहाय की रक्षा करना परोपकार के रूप हैं। किसी पागल अथवा रोगी की सेवा-शुश्रुषा करना अथवा किसी भूखे को अन्नदान करना भी परोपकार है। किसी को संकट से बचा लेना, किसी को कुमार्ग से हटा देना, किसी दुखी-निराश को सांत्वना देना-ये सब परोपकार के ही रूप हैं। कोई भी कार्य, जिससे किसी को लाभ पहुंचता है, परेापकार है, जो अपनी सामथ्र्य के अनुसार अनेक रूपों में किया जा सकता है।

परोपकार एक महान और मानवोचित भावना है। परोपकार के द्वारा ही मानवता उज्जवल होती है। अत: इसकी महत्ता अनंत है। परोपकार से ही मानव उन्नति और सुख-समृद्धि प्राप्त कर सकता है। मानव इस युग में अकेला कुछ भी करने में समर्थ नहीं है। वह समाज के साथ मिलकर ही सफलता प्राप्त कर सकता है। यदि समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही स्वार्थ-साधना में लगा रहे तो समाज में विश्रंखलता उत्पन्न हो जाएगी। जब किसी को समाज के हित की चिंता न होगी तब समाज उन्नति नहीं कर सकेगा। इस प्रकार से व्यक्तिगत उन्नतति भी असंभव है। अत: मानव-समाज का आदर्श कर्म परोपकार ही होना चाहिए।

परोपकार के लाभ

आत्मिक शांति की प्राप्ति- यद्यपि परोपकारी अपने हित और लाभ की दृष्टि से परोपकार नहीं करता, किंतु इससे उसे भी अनेक लाभ होते हैं। आत्मिक शांति इसमें सबसे प्रधान है। परोपकार करने वाले का अंत:करण पवित्र और शांत रहता है। उसकी आत्मा दीप्तिमान और तेजोमय हो जाती है। परोपकार करने वाले के मन में यह भावना रहती है कि वह अपने कर्तव्य को पूरा कर रहा है। इस भावना से उसके मन और आत्मा को जो शांति और संतोष मिलता है, वह लाखों रुपए खर्च करके बड़े-बड़े पद और सम्मान पाकर भी प्राप्त नहीं होता।

आशीर्वाद की प्राप्ति-परोपकार करने से दीन-दुखियों को आनंद तथा सुरक्षा की प्राप्ति होती है। उनकी आत्मा प्रसन्न होकर परोपकार करने वाले को आशीर्वाद देता है। सच्ची आत्मा से निकला हुआ आशीर्वाद कभी व्यर्थ नहीं जाता और परोपकार करने वाले पुरुष का जीवन सुखी व समृद्ध होता जाता है।

यश व सम्मान की प्राप्ति – परोपकार करने वाले मनुष्य का यश राजमहलों से लेकर झोपडिय़ों तक फैल जाता है। उसका सर्वत्र आदर होता है। जन-जन में उसकी गाथा गाई जाती है। कवि तथा लेखक उसका गुणगान करते हैं।

समाज की उन्नति-परोपकार करने से अनेक व्यक्तियों को लाभ होता है। अपने संकट के समय सहारा पाकर उनति की ओर अग्रसर होते हैं। व्यक्तियों की उन्नति तथा समृ8ि से समाज की उन्नति होती है।

परोपकारी व्यक्ति का जीवन दूसरों के लिए प्रेरणास्पद होता है।

आज संसार दुखी है। मानव-समाज की अवनति होती जा रही है। आज एक देश दूसरे देश को, एक समाज दूसरे समाज को, एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को नष्ट-भ्रष्ट करने के लिए कटिबद्ध है। इन सबका मूल कारण परोपकार की भावना का अभाव है। हम परोपकार की महत्ता को समझें, ग्रहण करें। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है-

‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।’
Answered by ossom
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hope it's not help you ok
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