Hindi, asked by somnathjatav8, 11 months ago

Bihari Ki kavyagat visheshtaen​

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Answered by Rohini7711
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बिहारी रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि हैं। रीतिकाल के अन्य कवियों का ध्यान जहाँ शिल्प पक्ष पर अधिक रहा, वहीं बिहारी के यहाँ अनुभूति एवं अभिव्यक्ति पक्ष दोनों मज़बूत हैं।

बिहारी का काव्य नीति, भक्ति एवंशृंगार की त्रिवेणी है। बिहारी सतसई में जहाँ नायक-नायिकाओं के संयोग पक्षों का वर्णन है,वहीं नीति संबंधी बातें भी समाविष्ट हैं-

"वहीं पराग नहीं मधुर नहीं विकास इहिं काल

अली कली ही सौ बन्ध्यो आगे कौन हवाल"

बिहारी मुख्य रूप सेशृंगार रस के कवि हैं। उनकाशृंगार अनुभाव प्रधान है। रीतिकाल के दरबारी माहौल के अनुरूप उनकाशृंगार वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण एवं दैहिक प्रधान है-

"पत्रा ही तिथि पाइये वा घर के चहूँ पास

नित प्रति पून्यो ही रहत आनन ओप उजास"

बिहारी के काव्य का एक पक्ष भक्ति से संबंधित भी है। हालाँकि इनकी भक्ति भावना रीतिकालीन परिस्थितियों के अनुकूल प्रेम वशृंगार प्रधान है। बिहारी ने राधा-कृष्ण के प्रति इस प्रकार भक्ति भावना प्रकट की है-

"मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय

जा तन की झांई परे, स्याम हरित दुति होय"

बिहारी का अभिव्यक्ति पक्ष अत्यंत मज़बूत है। भाषा की दृष्टि से देखें तो उनका काव्य ‘गागर में सागर’ के समान है जहाँ एक-एक दोहे में भाषा की समास व भावों की समाहार क्षमता दिखाई देती है-

"कहत नटत रीझत खीझत मिलत खिलत लजियात 

भरे भौन में करत हैं नैननु ही सों बात"

बिहारी के शिल्प का एक अन्य मज़बूत पक्ष उनकी बिंब योजना है। बिहारी सतसई का प्रत्येक दोहा बिंबों का भंडार है। अनुभाव आधारितशृंगार व दरबारी वातावरण के कारण यह विशेषता कुछ छयादा ही दिखाई देती है-

"बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय

सौंह करे भौंहनु हंसे देन कहि नट जाय"

इसी प्रकार, बिहारी की अलंकार योजना भी विशिष्ट है। उनका काव्य अलंकारों की विविधता हेतु प्रसिद्ध है जहाँ रूपक, उपमा विरोधाभास व अतिशयोक्ति की छटा देखने को मिलती है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि वे अनुभूति एवं अभिव्यक्ति पक्ष की सभी रीतिकालीन विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी कारण वे रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में भी स्थापित हैं।

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Answered by shanti5443
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Answer:

bihari ki riti kavy ki visheshta heding anusaran

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