bin diwaron ke ghar kahani summary
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एक स्त्री 'अपने' व्यक्तित्व की आँच में वे नहीं सभाँल पातीं, और पुरूष जिसको परम्परा ने घर के रक्षक, घर का स्थपति नियुक्त किया है, वह उन पिघलती दीवारों के सामने पूरी, तरह असहाय ! ... स्त्री पुरूष के बीच परिस्थितजन्य उभर जाने वाली गाँठों की परत-दर-परत पड़ताल करने वाली महत्त्वपूर्ण नाट्य-कृति हैः बिना दीवारों के घर।
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