Hindi, asked by iamdeepak9626, 1 year ago

biography of mother teresa in hindi

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Answered by james32
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जन्म तिथि: 26 अगस्त 1 9 10

जन्म स्थानः स्कोप्जे, तुर्क साम्राज्य (वर्तमान में मैसिडोनिया का गणतंत्र)

माता-पिता: निकोला बोज़क्ष्ही (पिता) और डानानाफेल बोजक्ष्ही (माँ)

संस्थान: धर्मार्थ मिशनरी

धार्मिक दृश्य: रोमन कैथोलिक

मौत: 5 सितंबर 1997

मौत का स्थान: कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत

स्मारक: मदर टेरेसा, स्कोप्जे, मैसिडोनिया गणराज्य मेमोरियल हाउस

मदर टेरेसा (1 910-199 7) मैसिडोनिया गणराज्य से एक रोमन कैथोलिक नन था जिसने भारत को सेवा के अपने देश के रूप में अपनाया। उन्होंने भारत, कोलकाता में रोमन कैथोलिक ननों का एक आदेश, धर्मार्थ मिशनरी के माध्यम से गरीब, बीमार और निराधार की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया। उसने एक बार कहा था, "प्यार स्वयं ही नहीं रह सकता - इसका कोई मतलब नहीं है प्यार को क्रियान्वित किया जाना है, और यह क्रिया सेवा है। "उनका काम भू-राजनीतिक सीमाओं से परे था और उसने पूरे मानवता को अपने उपचार में गले लगाया। उनके काम को कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार और मान्यता के माध्यम से मान्यता प्राप्त थी। वह 4 सितंबर 2016 को पोप फ्रांसिस द्वारा वेटिकन में सेंट पीटर के स्क्वायर में एक समारोह में कैन्यूइज़ किया गया और इसे कलकत्ता के सेंट टेरेसा के रूप में जाना जाने लगा।

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1 9 10 को एक अल्बानियाई परिवार में, तत्कालीन तुर्क साम्राज्य (मैसेडोनिया गणराज्य की राजधानी), स्कोपजे में अंजेज़े (एग्नेस) गोंएक्ष बोजक्ष्शु के रूप में हुआ था। वह परिवार में सबसे छोटी थी उनके पिता, निकोला बोजक्ष्ही एक निर्माण ठेकेदार के साथ-साथ एक व्यापारी और उसकी मां, डानैफेल बोजक्ष्हु, गजकोवा के निकट एक गांव से भेंट करते थे। परिवार भक्त कैथोलिक था और एग्नेस का पिता अल्बेनियाई स्वतंत्रता का एक मजबूत अभिप्रेत था। निकोलाई बीमार हो गई और आखिरकार 1 9 1 9 में अपनी बीमारियों के लिए निधन हो गया जब एग्नेस सिर्फ आठ वर्षीय था। एग्नेस विशेष रूप से अपनी मां के करीब थे, जो दान के प्रति गहरी प्रतिबद्धता वाली गहरा धार्मिक महिला थी।

बहुत कम उम्र से, एग्नेस को एक मठवासी जीवन से आकर्षित किया गया था। उसने एक कॉन्वेंट रन स्कूल में अपनी शिक्षा शुरू की और उसके चर्च में स्थानीय सेक्रेड हार्ट गाना बजाने में शामिल हो गए। उसने कैथोलिक मिशनरियों की कहानियां और मानवता की सेवा करने के उनके कार्य के बारे में सुना था। 12 वर्ष की उम्र तक, वह दृढ़ता से मानती थी कि यह उसकी जिंदगी का आह्वान था। विटिना-लेटनीस के ब्लैक मॅडोना के विशेष रूप से विभिन्न कैथोलिक चर्चों की तीर्थयात्रा ने अपने विश्वास और झुकाव को मजबूत किया।
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Answer:

जन्म: 26 अगस्त, 1910, स्कॉप्जे, (अब मसेदोनिया में)

मृत्यु: 5 सितंबर, 1997, कलकत्ता, भारत

कार्य: मानवता की सेवा, ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना

ऐसा माना जाता है कि दुनिया में लगभग सारे लोग सिर्फ अपने लिए जीते हैं पर मानव इतिहास में ऐसे कई मनुष्यों के उदहारण हैं जिन्होंने अपना तमाम जीवन परोपकार और दूसरों की सेवा में अर्पित कर दिया। मदर टेरेसा भी ऐसे ही महान लोगों में एक हैं जो सिर्फ दूसरों के लिए जीते हैं। मदर टेरेसा ऐसा नाम है जिसका स्मरण होते ही हमारा ह्रदय श्रध्धा से भर उठता है और चेहरे पर एक ख़ास आभा उमड़ जाती है। मदर टेरेसा एक ऐसी महान आत्मा थीं जिनका ह्रदय संसार के तमाम दीन-दरिद्र, बीमार, असहाय और गरीबों के लिए धड़कता था और इसी कारण उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन उनके सेवा और भलाई में लगा दिया। उनका असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ (Agnes Gonxha Bojaxhiu ) था। अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मदर टेरेसा एक ऐसी कली थीं जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही गरीबों, दरिद्रों और असहायों की जिन्दगी में प्यार की खुशबू भर दी थी।                   प्रारंभिक जीवन

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे (अब मसेदोनिया में) में हुआ। उनके पिता निकोला बोयाजू एक साधारण व्यवसायी थे। मदर टेरेसा का वास्तविक नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है। जब वह मात्र आठ साल की थीं तभी उनके पिता परलोक सिधार गए,  जिसके बाद उनके लालन-पालन की सारी जिम्मेदारी उनकी माता द्राना बोयाजू के ऊपर आ गयी। वह पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। उनके जन्म के समय उनकी बड़ी बहन की उम्र 7 साल और भाई की उम्र 2 साल थी, बाकी दो बच्चे बचपन में ही गुजर गए थे। वह एक सुन्दर, अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं। पढाई के साथ-साथ, गाना उन्हें बेहद पसंद था। वह और उनकी बहन पास के गिरजाघर में मुख्य गायिका थीं। ऐसा माना जाता है की जब वह मात्र बारह साल की थीं तभी उन्हें ये अनुभव हो गया था कि वो अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगायेंगी और 18 साल की उम्र में उन्होंने ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल होने का फैसला ले लिया। तत्पश्चात वह आयरलैंड गयीं जहाँ उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी। अंग्रेजी सीखना इसलिए जरुरी था क्योंकि ‘लोरेटो’ की सिस्टर्स इसी माध्यम में बच्चों को भारत में पढ़ाती थीं।

भारत आगमन

सिस्टर टेरेसा आयरलैंड से 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता में ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पंहुचीं। वह एक अनुशासित शिक्षिका थीं और विद्यार्थी उनसे बहुत स्नेह करते थे। वर्ष 1944 में वह हेडमिस्ट्रेस बन गईं। उनका मन शिक्षण में पूरी तरह रम गया था पर उनके आस-पास फैली गरीबी, दरिद्रता और लाचारी उनके मन को बहुत अशांत करती थी। 1943 के अकाल में शहर में बड़ी संख्या में मौते हुईं और लोग गरीबी से बेहाल हो गए। 1946 के हिन्दू-मुस्लिम दंगों ने तो कोलकाता शहर की स्थिति और भयावह बना दी।

मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी

वर्ष 1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों, बीमारों और लाचारों की जीवनपर्यांत मदद करने का मन बना लिया। इसके बाद मदर टेरेसा ने पटना के होली फॅमिली हॉस्पिटल से आवश्यक नर्सिग ट्रेनिंग पूरी की और 1948 में वापस कोलकाता आ गईं और वहां से पहली बार तालतला गई, जहां वह गरीब बुजुर्गो की देखभाल करने वाली संस्था के साथ रहीं। उन्होंने मरीजों के घावों को धोया, उनकी मरहमपट्टी की और उनको दवाइयां दीं।

धीरे-धीरे उन्होंने अपने कार्य से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। इन लोगों में देश के उच्च अधिकारी और भारत के प्रधानमंत्री भी शामिल थे, जिन्होंने उनके कार्यों की सराहना की।

मदर टेरेसा के अनुसार, इस कार्य में शुरूआती दौर बहुत कठिन था। वह लोरेटो छोड़ चुकी थीं इसलिए उनके पास कोई आमदनी नहीं थी – उनको अपना पेट भरने तक के लिए दूसरों की मदद लेनी पड़ी। जीवन के इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर उनके मन में बहुत उथल-पथल हुई, अकेलेपन का एहसास हुआ और लोरेटो की सुख-सुविधायों में वापस लौट जाने का खयाल भी आया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

7 अक्टूबर 1950 को उन्हें वैटिकन से ‘मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी’ की स्थापना की अनुमति मिल गयी। इस संस्था का उद्देश्य भूखों, निर्वस्त्र, बेघर, लंगड़े-लूले, अंधों, चर्म रोग से ग्रसित और ऐसे लोगों की सहायता करना था जिनके लिए समाज में कोई जगह नहीं थी।

‘मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी’ का आरम्भ मात्र 13 लोगों के साथ हुआ था पर मदर टेरेसा की मृत्यु के समय (1997) 4 हजार से भी ज्यादा ‘सिस्टर्स’ दुनियाभर में असहाय, बेसहारा, शरणार्थी, अंधे, बूढ़े, गरीब, बेघर, शराबी, एड्स के मरीज और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों की सेवा कर रही हैं

मदर टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले । ‘निर्मल हृदय’ का ध्येय असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों का सेवा करना था जिन्हें समाज ने बाहर निकाल दिया हो। निर्मला शिशु भवन’ की स्थापना अनाथ और बेघर बच्चों की सहायता के लिए हुई।

सच्ची लगन और मेहनत से किया गया काम कभी असफल नहीं होता, यह कहावत मदर टेरेसा के साथ सच साबित हुई।

सम्मान और पुरस्कार

मदर टेरेसा को मानवता की सेवा के लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए। भारत सरकार ने उन्हें  पहले पद्मश्री (1962) और बाद में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ (1980) से अलंकृत किया। संयुक्त राज्य अमेरिका ने उन्हें वर्ष  1985 में मेडल आफ़ फ्रीडम 1985 से नवाजा। मानव कल्याण के लिए किये गए कार्यों की वजह से मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। उन्हें यह पुरस्कार ग़रीबों और असहायों की सहायता करने के लिए दिया गया था। मदर तेरस ने नोबेल पुरस्कार की 192,000 डॉलर की धन-राशि को गरीबों के लिए एक फंड के तौर पर इस्तेमाल करने का निर्णय लिया।

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