Hindi, asked by mehulratawal, 2 months ago

biography of PT usha in hindi urgent

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Answered by priyalgandhi1904
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पीटी उषा का जन्म 27 जून 1964 को केरल के कोंझीकोडे स्थान के पायोली गांव में हुआ है। उनके पिता का नाम श्री ई.पी.एम. पैठल था और मां का नाम लक्ष्मी था। इनकी दो बहने तथा एक भाई है।इनके पति का नाम श्रीनिवास तथा पुत्र का नाम उज्जवल है।

ओ.एम नांबियार ने पीटी उषा को नेशनल स्कूल गेम्स में दौड़ते हुए देखा था फिर उनके कैरियर को संवारा। उनके दौड़ने की शैली तथा प्रतिभा अद्भुत थी।

बचपन में बहुत ही खराब स्वास्थ्य तथा गरीबी से जूझने के बावजूद उन्होंने नांबियार तथा बालकृष्ण नैयर की प्रेरणा से अपने खिलाड़ी रूप में विकसित किया। यहां तक कि इस तेज धाविका को कभी “भारतीय ट्रैक की महारानी” तो “पायोली एक्सप्रेस” कहां गया। देश विदेश में अनेक स्वर्ण पदक जीतने के कारण उन्हें “Golden girl” के नाम से भी जाना जाता है। एक एक सीट के रूप में उनका कैरियर की शुरुआत साल 1979 से शुरू हुआ जब नेशनल स्कूल गेम्स में उन्होंने भाग लिया था। P. T. Usha Biography in Hindi

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहली बार उन्होंने साल 1980 में मॉस्को ओलंपिक में भाग लिया पर भी कुछ हासिल नहीं कर पाई थी। 1 साल 1983 में नई दिल्ली एशियाड में 100 मीटर और 200 मीटर की दौड़ में दो रजत पदक जीते हैं।वहीं साल 1983 में कुवैत में आयोजित एशिया ट्रैक एंड फील्ड चैंपियनशिप में एशिया का रिकॉर्ड तोड़ा तथा स्वर्ण पदक प्राप्त किया है। लॉस एंजेलिस में आयोजित हुई ओलंपिक में उन्होंने 400 मीटर की दौड़ के फाइनल में पहुंचने वाली प्रथम भारतीय महिला होने का गौरव भी प्राप्त है।

वही जकार्ता में हुई छठी A.F.C, में पीटी उषा ने 5 स्वर्ण पदक जीते थे। सियोल में आयोजित 10 में एशियाई गेम में पीटी उषा को चार स्वर्ण तथा एक रजत पदक मिला था। ट्रैक एंड फील्ड की सभी प्रतियोगिता में पीटी उषा ने सब पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए। साल 1986 में अटलांटा ओलंपिक में अंतिम बार भाग लिया। खेलों के प्रति अत्यधिक समर्पण होने के कारण पीटी उषा ने साल 1991 में विवाह के बाद केवल 1992 में ओलंपिक में भाग नहीं लिया अन्यथा यह सभी प्रतियोगिताओं में लगातार भाग लेती रही और स्वर्ण पदक दिलवा करके भारत को गौरव को बढ़ाती रही है। P. T. Usha Biography in Hindi

पीटी उषा ने अभी तक 101 अंतरराष्ट्रीय पदक जीते हैं। उन्होंने दक्षिण रेलवे में अधिकारी पद पर कार्यरत हैं। साल 1995 में उन्हें पदम श्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है।

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