Hindi, asked by theodoragradea7939, 1 year ago

Biography of subhadra kumari chauhan in hindi

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Answered by Adiya11
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जन्म: १६ अगस्त १९०४
निहालपुर इलाहाबाद भारत
मृत्यु: १५ फरवरी १९४८
जबलपुर भारत
कार्यक्षेत्र: लेखक
राष्ट्रीयता: भारतीय
भाषा: हिन्दी
काल: आधुनिक काल
विधा: गद्य और पद्य
विषय: कविता और कहानियाँ
साहित्यिक
आन्दोलन: भारतीय स्वाधीनता आंदोलन
से प्रेरित देशप्रेम
This is about Subhadra Kumari Chauhan from Wikipedia (From internet)
Answered by Anonymous
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सुभद्राकुमारी का जन्म नागपंचमी के दिन 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद (उत्तरप्रदेश) के निकट निहालपुर गाँव में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। सुभद्राकुमारी को बचपन से ही काव्य-ग्रंथों से विशेष लगाव व रूचि थाअल्पायु आयु में ही सुभद्रा की पहली कविता प्रकाशित हुई थी।सुभद्रा और महादेवी वर्मा दोनों बचपन की सहेलियाँ थीं।सुभद्राकुमारी का विवाह खंडवा (मद्य प्रदेश) निवासी; 'ठाकुर लक्ष्मण सिंह' के साथ हुआ। पति के साथ वे भी महात्मा गांधी के आंदोलन से जुड़ गईं और राष्ट्र-प्रेम पर कविताएं करने लगी। 1948 में एक सड़क दुर्घटना में आपका निधन हो गया।पहला काव्य-संग्रह 'मुकुल' 1930 में प्रकाशित हुआ। इनकी चुनी हुई कविताएँ 'त्रिधारा' में प्रकाशित हुई हैं। 'झाँसी की रानी' इनकी बहुचर्चित रचना है।कविता : अनोखा दान, आराधना, इसका रोना, उपेक्षा, उल्लास,कलह-कारण, कोयल, खिलौनेवाला, चलते समय, चिंता, जीवन-फूल, झाँसी की रानी की समाधि पर, झांसी की रानी, झिलमिल तारे, ठुकरा दो या प्यार करो, तुम, नीम, परिचय, पानी और धूप, पूछो, प्रतीक्षा, प्रथम दर्शन,प्रभु तुम मेरे मन की जानो, प्रियतम से, फूल के प्रति, बिदाई, भ्रम, मधुमय प्याली, मुरझाया फूल, मेरा गीत, मेरा जीवन, मेरा नया बचपन, मेरी टेक, मेरे पथिक, यह कदम्ब का पेड़-2, यह कदम्ब का पेड़, विजयी मयूर,विदा,वीरों का हो कैसा वसन्त, वेदना, व्याकुल चाह, समर्पण, साध, स्वदेश के प्रति, जलियाँवाला बाग में बसंत सुभद्राजी को प्राय: उनके काव्य के लिए ही जाना जाता है लेकिन उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी की और जेल यात्रा के पश्चात आपके तीन कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए, जो निम्नलिखित हैं:

बिखरे मोती (1932 )

उन्मादिनी (1934)

सीधे-सादे चित्र (1947 )

खूब लड़ी मरदानी वह तो झांसी वाली रानी थी' जैसी अमर कविता की रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान जितनी बड़ी कवयित्री थीं, उतनी ही बड़ी कथाकार भी थीं। कविताओं की भांति उनकी कहानियाँ भी हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं और पाठकों की संवेदना पर नावक के तीर का-सा असर छोड़ती हैं। सुभद्रा जी की कहानियाँ एक ओर जहाँ रूढ़ियों पर प्रहार करती हैं, वहीं ऊपरी दिखावे का भी विरोध करती हैं। उनकी कहानियां पठनीय और संग्रहणीय हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान भले ही आज हमारे बीच मौजूद न हो लेकिन उनकी कविताएँ , कहानियां , आदि हमारे बीच हमारी किताबों में  आज भी ज़िंदा हैं।

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