Hindi, asked by Anonymous, 1 year ago

Bishmila khan kala ke ananya upasak the give reasons class 10 hindi

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Answered by Udaykant
38
बिस्मिल्लाह खान कला के अनन्य उपासक थे। वे 80 वर्षों से शहनाई बजा रहे थे। इस कला की साधना के लिए वह घंटों के गंगा घाट पर बैठकर रियाज़ करते थे। वे अपनी कला को उपासना की चीज मानते थे। अतः वह अंत तक खुद से सच्चे सुर की मांग करते रहे। वह कला को पैसा कमाने का साधन नहीं समझते थे इसलिए वह जीवन भर संगीत साधना करते रहे।

Anonymous: thanks
Answered by nasskhan970
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शादी के मौके पर जब भी शहनाई बजती हैं। तब Bismillah Khan – उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ साहब की याद जरुर आती हैं। भारत में विविध पारंपरिक मौको पर लोग शेहनाई जैसे यंत्रो को आज भी पसंद करते है।

Ustad Bismillah Khan

पूरा नाम – उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ
जन्म – 21 मार्च, 1916
जन्मस्थान – डुमराँव, बिहार
पिता – पैगम्बर खाँ
माता – मिट्ठन बाई

उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ जीवनी / Bismillah Khan Biography in Hindi

 

बिस्मिल्ला ख़ाँ साहब ने शेहनाई बजाने की कला से पुरे विश्व में शेहनाई को एक अलग पहचान दिलवाई थी। इसके साथ ही सन 2001 में उन्हें भारत के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था

खान का जन्म 21 मार्च 1916 को दुम्राओं में भिरुंग में एक पारंपरिक मुस्लिम परिवार में हुआ था, आज यह स्थान बिहार के पूर्वी भाग में स्थित है। वे पैगम्बर बक्श खान और मिट्ठन के दुसरे बेटे थे। जन्म के समय में उनका नाम कमरुद्दीन रखा गया था लेकिन बाद में उनके बड़े भाई और दादा रसूल बक्श खान उन्हें शमसुद्दीन या बिस्मिल्लाह कहकर पुकारते थे। और तभी से कुछ समय बाद वे बिस्मिल्लाह के नाम से ही जाने जानें लगे।

उनके पिता भोजपुर के राजा के दुम्राओं दरबार में संगीतकार के पद पर कार्यरत थे। उनके परदादा हुसैन बक्श और दादा रसूल बक्श भी दमराव पैलेस में संगीतकार ही थे।

उनके सभी पूर्वज दरबारी संगीतकार थे और वे भोजपुर राज्य में नक्कार खाना में अपने वाद्यों को बजाते थे जो आज बिहार राज्य में आता है। उनके पिता दुमराओं साम्राज्य, बिहार के महाराजा केशव प्रसाद सिंह के दरबार में शेहनाई वादक का काम करते थे।

6 साल की आयु में ही वे वाराणसी चले गए थे। अपने अंकल के प्रशिक्षण में ही बिस्मिल्लाह खान साहब ने संगीत का प्रशिक्षण लिया था और फिर बाद में वाराणसी विश्वनाथ मंदिर के अली बक्श विलायतु से उन्होंने शेहनाई बजाने का प्रशिक्षण लिया था।

बिहार सरकार ने उनकी याद में एक म्यूजियम बनाने का निर्णय भी लिया था जिसमे उनके जन्मगाँव दुमराओं में उनका एक स्टेचू भी लगाया जाना था।

 

बिस्मिल्लाह खान संगीत करियर – Bismillah Khan Musical Career

शेहनाई जैसे संगीत वाद्य यंत्र को प्रसिद्ध बनाने में बिस्मिल्लाह खान ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने भारतीय संगीत के मध्य भाग में शेहनाई खरीदी थी और 1937 में कलकत्ता ऑल इंडिया म्यूजिक कांफ्रेंस में उन्होंने इसे बजाया भी था।

उस समय शेहनाई बजाने में उनका मुकाबला कोई और नही कर सकता था हम कह सकते है की उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का उस समय शेहनाई बजाने में एकाधिकार था। शेहनाई और बिस्मिल्लाह उस समय दोनों ही एक-दूजे के पर्यायी बने हुए थे।

भारतीय आज़ादी के बाद बिस्मिल्लाह खान भारत के प्रसिद्ध क्लासिकल संगीतकारों में से एक थे और साथ ही भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता का एक जीता-जागता उदाहरण थे। उन्होंने दुनिया में कई जगहों पर, कई देशो में अपने शेहनाई की धुन से लोगो को मंत्रमुग्ध किया था।

बिस्मिल्लाह खान साहब शेहनाई को अपनी बेगम की तरह चाहते थे और अपने काम की भगवान की तरह पूजा करते थे। उन्हें सम्मान देते हुए उनकी मृत्यु के बाद शेहनाई को भी उन्ही के साथ जलाया गया था। अपने संगीत के गुणों से लोगो में शांति, एकता और प्यार फ़ैलाने के लिये उस्ताद बिस्मिल्लाह खान प्रसिद्ध थे।


Anonymous: khain se copy kiya
nasskhan970: bhai mujha ata ha
Udaykant: oooh
Udaykant: jhut bol raha
Anonymous: jhut mat bol kala kawua kat kaega
nasskhan970: mane jhut nahi bola
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Anonymous: write answer is of Udakyant
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