बजारूपं
अथवा कपट से क्या तात्पर्य है किस प्रकार के व्यक्ति को बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं
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-बाजार नामक संस्था को लक्ष्य भ्रष्ट करना
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बाजारूपन का तात्पर्य है-बाजार नामक संस्था को लक्ष्य भ्रष्ट करना। बाजार का गठन समाज की आवश्यकताओं को सुचारु ढंग से पूर्ति करने के लिए होता है। इसी में बाजार की सार्थकता है। कुछ लोग जो अपनी आवश्यकताओं का सही ज्ञान नहीं रखते, वे बाजार में अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ का अनुचित प्रदर्शन करते हैं और अनाप-शनाप अनावश्यक चीजें खरीदते हैं। इससे बाजार में जो विकार उत्पन्न होता है उसी को बाजारूपन कहते हैं। अपनी आवश्यकता को ठीक तरह जानकर बाजार से केवल उपयोगी चीजों को खरीदने वाले ग्राहक ही उसको बाजारूपन से बचाते हैं तथा सार्थकता प्रदान करते हैं
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