बक्सर के युद्ध के कारणों एवं परिणामों का उल्लेख करें।
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baksar yuddh karan, ghatnaye, parinaam;बंगाल मे प्लासी युद्ध के परिणामस्वरूप मीरजाफर नवाब बन चुका था लेकिन वह शांति से नही रह सका। भारी मात्रा मे धन और भूमि अंग्रेजों को देने के कारण मीर जाफर के सम्मुख अनेक राजनैतिक और आर्थिक समस्याएं उपस्थित हो गयी। मीरजाफर नाममात्र का नवाब बन कर रह गया। सत्ता या शक्ति क्लाइव के हाथो मे थी। धन के अभाव मे सैनिक विद्रोह कर रहे थे। किश्तों को देने के लिए अंग्रेज दबाव डाल रहे थे। डचों का भी भय था किन्तु उन्हें क्लाइव ने पारजित कर दिया था। मीर जाफर ने दुर्लभराय और रामनारयण को दबाया जिससे राज्य मे असंतोष व्याप्त हो गया। सन् 1760 मे मुगल सम्राट आलमगीर का पुत्र अलीगौहर, अवध का मुहम्मद कुली खान कलाईव से पराजित हो चुके थे और इसके बदले मे मीर जाफर ने अंग्रेजों को कलकत्ता की दक्षिण भूमि दे दी थी। इतना सब कुछ करने के बाद भी मीर जाफर को हटाकर मीर कासिम को बंगाल का नबाब बना दिया गया।
क्सर युद्ध के कारण (baksar ke yuddh ke karan)
1. मीर कासिम की योग्यता से अंग्रेजों को खतरा
अंग्रेजों ने मीर कासिम को नवाब बना दिया था। अंग्रेज चाहते थे कि अयोग्य व्यक्ति यदि नवाब बनेगा तो उनके नियंत्रण मे और उन पर निर्भर रहेगा। लेकिन ऐसा नही हुआ मीर कासिम योग्य निकला। अतः अंग्रेजों ने मीर कासिम को भी हटाने का निश्चय किया।
2. अंग्रेजो का अवैध व्यापार
1757 की भांति कंपनी के भ्रष्ट कर्मचारी अवैध व्यापार मे लगे थे। अपने नाम से वह देशी व्यापारियों का माल बिना चुंगी के भेजने लगे थे। प्रत्येक चौकी पर अंग्रेज भारतीयों की नौका को रोककर विलम्ब करते थे और उनसे रिश्वत मांगते थे। बिना अनुमति कारखाने, सैनिकों तथा किलों की संख्या बढ़ा दी गई। मीर कासिम ने यह सब रोकने के लिये कहा लेकिन अंग्रेजों ने उस की बात नही मानी। अतः आवश्यक हो गया है।
3. मीर कासिम के द्वारा व्यापार नियंत्रण
पहले मीर कासिम ने अवैध व्यापार को रोकने के लिये कंपनी से वार्ता की परन्तु न मानने पर विभिन्न चौकियों पर माल की जाँच-पड़ताल आरंभ की। इस पर भी जब अंग्रेज न माने तो देशी व्यापारियों की वस्तु पर से भी उसने चुंगी समाप्त कर दी। इससे कंपनी की भ्रष्ट आय रूक गई। अब कंपनी के कर्मचारी मीर कासिम को हटाने की मांग करने लगे।
4. समझौते के प्रयत्न असफल
कंपनी ने मीर कासिम के पास वान्सेटार्ट को समझौते के लिये भेजा। वान्सेटार्ट ने अवैध व्यापार की बात तो स्वीकार की तथा अवैध व्यापार न करने की बात मान ली परन्तु कलकत्ता कौंसिल ने समझौते को अस्वीकार कर अप्रत्यक्ष रूप से अवैध व्यापार का समर्थन किया। वास्तव मे कौसिल ने मीर कासिम को हटाने का निश्चय कर लिया था। इससे संघर्ष अनिवार्य हो गया।
5. मीर कासिम को हटाकर मीर जाफर को पुनः नवाब बनाना
1763 मे अंग्रेजों ने मीर कासिम पर आक्रमण कर उसे पराजित किया तथा उसे हटाकर मीर जाफर को पुनः नवाब बना दिया गया। अंग्रेजों को पुनः वही भ्रष्ट व्यापार की छुट मिली गई। इससे भ्रष्टाचार अधिक बढ़ा। मीर जाफर निर्बल सिद्ध हुआ। लेकिन मीर कासिम ने अपने इस अपमान का बदला लेने का निश्चय कर लिया।
6. सम्राट, मीर कासिम और शुजाउद्दौला के संयुक्त प्रयास
बंगाल से भागकर मीर कासिम बिहार और फिर अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पास गया। इसी समय मुगल सम्राट शाह आलम भी अवध मे उपस्थित था। तीनों ने मिलकर अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिये अंग्रेजों से संघर्ष करने का निश्चय किया। मीर कासिम ने इस युद्ध के लिये 11 लाख रूपये प्रतिमास अवध को देने का वचन दिया। अंग्रेज इस संयुक्त प्रयत्न को देखकर युद्ध के लिये तैयार हो गये।
बक्सर युद्ध की घटनाएं
1763 मे मीर कासिम ने पटना से भागते समय लगभग 200 अंग्रेज बंदियों की हत्या करवा दी थी और सम्राट तथा अवध के साथ संयुक्त मोर्चा भी स्थापित कर लिया था अतः दोनों मे 1764 मे बक्सर के मैदान मे युद्ध हुआ। अंग्रेज सेनापति मनरो ने अवध के नवाब वजीर को पराजित कर दिया। मई 1765 मे शुजाउद्दौला अंतिम बार पराजित हुआ। दूसरी ओर मुगल सम्राट शाहआलम ने अंग्रेजों से समझौता कर लिया। मीर कासिम को निराश होकर युद्ध भूमि से भाग ना पड़ा।
इलाहाबाद की संधि
मई 1765 मे संयुक्त मोर्चे की पूर्णरूपेण पराजय हो गई और शुजाउद्दौला तथा सम्राट शाहआलम को विवश होकर इलाहाबाद की संधि करनी पड़ी। क्लाइव ने राजनैतिक समस्याओं का हल निकालने मे अपनी कूटनीतिज्ञता का परिचय दिया। इलाहाबाद की संधि की निम्न शर्तें थी--
1. शुजाउद्दौला से कड़ा और इलाहाबाद छीनकर अवध प्रदेश उसे लौटा दिया गया।
2. अंग्रेजों को शुजाउद्दौला ने 50 लाख रूपये युद्ध क्षति के देना स्वीकार किया।
3. अंग्रेजों ने अवध को उसके व्यय पर सैनिक सहायता देना स्वीकार किया।
4. अंग्रेजों को नवाब ने बिना कर दिए अवध मे व्यापार करने की छूट दी।
5. मुगल सम्राट को कड़ा और इलाहाबाद दे दिए गए।
6. मुगल सम्राट को अंग्रेजों ने 26 लाख रूपये वार्षिक पेंशन देना स्वीकार किया।
7. मुगल सम्राट ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को सौंप दी अर्थात् इनसे वे लगान वसूल कर सकते थे।
बक्सर के युद्ध के परिणाम एवं महत्व (baksar ke yuddh parinaam)
बक्सर का युद्ध सरकार और दत्त के अनुसार, प्लासी से कहीं अधिक निर्णायक था और सरजेम्स स्टीफन के अनुसार प्लासी से अधिक महत्व का था। बक्सर युद्ध के परिणाम या महत्व इस प्रकार है--
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