बलिहारी गुर आपण, द्योहाड़ी के बार।
जिनि मानिष ते देवता, करत न लागी बार।।1।।
सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार।
लोचन अनंत उघाड़िया, अनँत दिखावणहार। 12 ।।
दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट ।
पूरा किया बिसाहुणा, बहुरि न आवौं हट्ट।।३।।
बूड़े थे परि ऊबरे, गुर की लहरि चकि।
भेरा देख्या जरजरा,
ऊतरि पड़े फरंकि।।4।।
चिंता तो हरि नाँव की, और न चिन्ता दास।
जे कुछ चितवै राम बिन, सोइ काल की पास।।5।।
मुझ मैं रही न हूँ।
या
रित ।।
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सॉरी हमें हिंदी नहीं आता हमें माफ कर दीजिए
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nice poem but what's your question????
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