Hindi, asked by abdance35, 9 months ago

बलि के गुरु कौन थे ? बलि ने अपने गुरु का परित्याग क
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Answered by vijaykumaryadav19985
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Answer:

बलि सप्तचिरजीवियों में से एक, पुराणप्रसिद्ध विष्णुभक्त, दानवीर, महान् योद्धा थे। विरोचनपुत्र दैत्यराज बलि सभी युद्ध कौशल में निपुण थे। वे वैरोचन नामक साम्राज्य के सम्राट थे जिसकी राजधानी महाबलिपुर थी। इन्हें छलपूर्वक परास्त करने के लिए विष्णु का वामनावतार हुआ था। इसने दैत्यगुरु शुक्राचार्य की प्रेरणा से देवों को विजित कर स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया । समुद्रमंथन से प्राप्त रत्नों के लिए जब देवासुर संग्राम छिड़ा और दैत्यों एवं देवताओं के बीच युद्ध हुआ तो दैत्यों ने अपनी मायावी शक्तियों एवं का प्रयोग कर के देवताओं को युद्ध में परास्त किया। उस के बाद राजा बलि ने विश्वजित्‌ और शत अश्वमेध यज्ञों का संपादन कर तीनों लोकों पर अधिकार जमा लिया। कालांतर में जब यह अंतिम अश्वमेघ यज्ञ का समापन कर रहा था, तब दान के लिए वामन रूप में ब्राह्मण वेशधारी विष्णु उपस्थित हुए। शुक्राचार्य के सावधान करने पर भी बलि दान से विमुख न हुआ। वामन ने तीन पग भूमि दान में माँगी और संकल्प पूरा होते ही विशाल रूप धारण कर प्रथम दो पगों में पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लिया। शेष दान के लिए बलि ने अपना मस्तक नपवा दिया। लोक मान्यता है कि पार्वती द्वारा शिव पर उछाले गए सात चावल सात रंग की बालू बनकर कन्याकुमारी के पास बिखर गए। 'ओणम' के अवसर पर राजा बलि केरल में प्रतिवर्ष अपनी प्यारी प्रजा को देखने आते हैं। राजा बलि का टीला मथुरा में है।[1]

Answered by handsomeram16645
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Explanation:

शुक्राचार्य

kuyki वह अधर्मा के मार्ग पर चल रहे थे।

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