बली वासी मिश्र ने अंग्रेज को लौटे का क्या इतिहास बताया
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अन्नपूर्णानन्द की कहानी “अकबरी लोटा” एक हास्य पूर्ण कहानी है। लेखक ने कहानी को बहुत ही रोचंक तरीके से प्रस्तुत किया गया है और साथ के साथ बताया गया है कि परेशानी के समय में परेशान न होकर समझदारी से किस तरह से एक समस्या का हल निकाला जा सकता है और दूसरी बात इस कहानी में यह भी बताया गया है कि एक सच्चा मित्र ही मित्र के काम आता है और उसके लिए बहुत कुछ कर गुजर जाता है। कहानी के माध्यम से लेखक हमें सीख देना चाहता है कि सही वक़्त पर सही समझ का उपयोग करना कितना जरुरी है। इस कहानी के मुख्य पात्र हैं – लाला झाऊलाल और उनके मित्र पंड़ित बिलवासी मिश्र जी।
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अकबरी लोटा पाठ की व्याख्या
लाला झाऊलाल को खाने-पीने की कमी नहीं थी। काशी के ठठेरी बाजार में मकान था। नीचे की दुकानों से एक सौ रुपये मासिक के करीब किराया उतर आता था। अच्छा खाते थे, अच्छा पहनते थे, पर ढ़ाई सौ रुपये तो एक साथ आँख सेंकने के लिए भी न मिलते थे।
मासिक – महीने
लेखक कहते हैं कि लाला झाऊलाल को खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी। अच्छे खाते पीते परिवार से थे और व्यवसाय भी अच्छा खासा चल रहा था। काशी के ठठेरी बाजार में मकान था। मकान के नीचे बनी दुकानों से महीने के करीब एक सौ रुपये किराया आ जाता था। अर्थात् उन्हें किसी तरह की कमी नहीं थी अच्छा व्यवसाय था, अच्छा बड़ा मकान था, और मकान की दुकानों का एक सौ रुपये के करीब किराया भी आ जाता था तो गुजरा अच्छे से हो जाता था। परन्तु फिर भी एक साथ ढ़ाई सौ रूपए होना बहुत बड़ी बात थी।
आज शाम को पं. बिलवासी मिश्र को आना था। यदि न आए तो? या कहीं रुपये का प्रबंध वे न कर सके? इसी उधेड़-बुन में पड़े लाला झाऊलाल छत पर टहल रहे थे। कुछ प्यास मालूम हुई। उन्होंने नौकर को आवाज़ दी। नौकर नहीं था, खुद उनकी पत्नी पानी लेकर आईं।
उधेड़-बुन – फिक्र
लेखक कहते हैं कि आज शाम को लाला झाऊलाल के मित्र पं. बिलवासी मिश्र को आना था। लाला झाऊलाल उसका इंतजार कर रहे थे और सोच भी रहे थे अगर वह नहीं आया तो फिर क्या होगा या कहीं रुपये का प्रबंध वे न कर सके? तरह तरह के सवाल उनके दिमाग में आ रहे थे। इसी फ़िक्र में पड़े लाला झाऊलाल छत पर टहल रहे थे। वह बहुत ही चिंता में थे। ऐसी घबराट के कारण उन्हें प्यास लगी, उन्होंने नौकर को आवाज़ दी। नौकर नहीं था, खुद उनकी पत्नी पानी लेकर ऊपर छत पर चली आई।
वह पानी तो जरूर लाईं पर गिलास लाना भूल गई थीं। केवल लोटे में पानी लिए वह प्रकट हुईं। फिर लोटा भी संयोग से वह जो अपनी बेढ़ंगी सूरत के कारण लाला झाऊलाल को सदा से नापसंद था।
प्रकट – उपस्थित
बेढ़ंगी – बेकार
उ