बनें।
मैं प्रस्तुत हूँ चाहे मेरी मिट्टी जनपद की धूल बने
फिर उसी धूल का कण-कण भी मेरा गति-रोधक शूल
अपनी जीवन का रस देकर जिसको यत्नों से पाला
क्या वह केवल अवसाद-मलिन झरते आसू की माला है।
वे रोगी होगे प्रेम जिन्हें अनुभव रस कटु प्याला है-
वे मुर्दे होगें प्रेम जिन्हें सम्मोहन कारी हाला है,
मैने विदग्ध हो जान लिया, अंतिम रहस्य पहचान लिया-
मैनें आहुति बनकर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है।
(क) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अपनी कैसी चाह को व्यक्त किया है?
(ख) प्रेम की वास्तविक अनुभूति से कैसे लोग अनभिज्ञ रह जाते हैं?
(ग) रेखांकित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए।
(घ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए।
(ङ) “मैने आहुति बनकर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है” पंक्ति का आशय
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prastut padyans me kavi ne apni kaisi chah ko vyakt kiya hai
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