Book: Medha
Class: VI
Chapter: 4 veerta ka samman
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वीरता का सम्मान नाटक में लेखक ने वीरता की एक अद्भुत गाथा प्रस्तुत किये है . जिसमे ग्रीक (यूनान ) का सम्राट सिकंदर , तक्षशिला का राजा आंभी और पंचनंद प्रदेश का राजा पुरु के बिच हुए वार्ता को लिखे है . पुरु युद्ध में सिकंदर से हारने के बाद बंदी बन कर जब उसके वहाँ जाता है तब पुरु को सभा बुलाया जाता है .उसके बाद पुरु बंदी होने के बाद भी खुद को भारत का वीर ही कहता है क्युकी पुरु अंतिम समय तक युद्ध जितने का प्रयास करता है और सिकंदर के सामने हार नहीं मानता है . लेकिन आंभी सिकंदर से संधि कर लेता है ताकि आंभी बच जाये और सिकंदर का मित्र भी बन जाये ....लेकिन पुरु बंदी होने पर भी सिकंदर का संधि प्रस्ताव स्वीकार नहीं करता है क्युकी संधि स्वीकार करने पर पुरु धीरे धीरे भारत पर अपना राज्य बढ़ा लेता इसलिए वो स्वीकार नहीं किया और जब अंत में सिकंदर ने पुरु से पूछा की तुम्हारे साथ क्या किया जाये तो पुरु ने बोला की वही जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है .....इससे खुश होकर सिकंदर ने पुरु को आजाद कर दिया और गले लगा लिया ......और तब सिकंदर बोला की अब हम मित्र हुए ...इस प्रकार se अपने देश के प्रति देश भक्ति और वीरता को दिखाया गया है