Braj bhasha gadhya ka sutrapat Kab Hua tha
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- (श्रीमद्भागवत के रचनाकाल में "व्रज" शब्द क्षेत्रवाची हो गया था। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक के मध्य देश की साहित्यिक भाषा रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने उत्थान एवं विकास के साथ आदरार्थ "भाषा" नाम प्राप्त किया और "ब्रजबोली" नाम से नहीं, अपितु "ब्रजभाषा" नाम से विख्यात हुई।
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इसका सूत्रपात दसवीं शताब्दी के आस-पास माना जाता है। ' ब्रजभाषा-गद्य का प्रयोग अनुमानतः संवत् 1400 के आसपास से स्वीकार किया गया है। हठयोग, ब्रह्मज्ञान आदि विषयों से सम्बन्धित कुछ गोरखपन्थी गद्य-पुस्तकें प्राप्त हुई हैं। इनमें राजस्थानी और खड़ीबोली-मिश्रित गद्य का प्रयोग किया गया है।
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