बरस़े बदररया सावन की।
सावन की, िन-भावन की।।
सावन िें उिग्यो ि़ेरो िनवा, भनक सुनी हरर आवन की।
उिड-घुिड िहुाँददस स़े आया, दामिन दिकै झर लावन की।।
नन्ह ीं-नन्ह ीं बाँूदन ि़ेहा बरस़े, शीतल पवन सुहावन की।
िीरा क़े प्रभुचगरधर नागर! आनींद-िींगल गावन की।।
(क) िीरा को सावन िनभावन क्यों लगऩे लगा?
(ख) पाठ क़े आधार पर सावन की पवश़ेषताएाँ मलखखए।
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Yes
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HJjahsgsyuxuxjckckjnzj a
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