Hindi, asked by DaveLaksh, 1 day ago

बरषहिं जलद कविता के आधार पर सीता हरण और उनकी खोज प्रसंग का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए |
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Answered by mad210217
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सीता हरण

Explanation:

  • कवि कहते हैं कि आकाश में बादल उमड़-घुमड़कर भयंकर गर्जना कर रहे हैं । (श्रीरामजी कह रहे हैं कि) प्रिया के बिना मेरा मन डर रहा है। बिजली आकाश में ऐसे चमक रही है, जैसे दुष्ट व्यक्ति की क्षणिक मित्रता चमक कर लुप्त हो जाती है।
  • बादल काफ़ी नीचे उतरकर बरस रहे हैं।उसी प्रकार विद्वान व्यक्ति भी विद्या प्राप्त करके विनम्र हो जाते हैं। बूँदों की चोट पहाड़ पर पड़ रही है और पहाड़ प्रहार को सह रहे हैं, जिस प्रकार संत दुष्टों के कटु वचनों को सहते हैं।
  • छोटी नदियाँ बारिश के जल से भरकर अपने किनारों को तोड़ती हुई आगे बढ़ रही हैं, जैसे कि थोड़ा-सा धन पाकर ही दुष्ट लोग इतराने लगते हैं। बरसात का पानी धरती पर गंदा हो रहा है, जैसे प्राणी से माया लिपट गई है।
  • बारिश का पानी तालाबों में भर रहा है। जिस तरह सज्जन व्यक्ति के पास अच्छे गुण चले आते हैं।  
  • नदी का पानी समुद्र में जाकर स्थिर हो जाता है जिस प्रकार जीव भी हरि को प्राप्त करके मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
  • पृथ्वी हरी-भरी हो जाने पर घास भी बड़ी हो गई है, जिससे रास्तों का पता ही नहीं चल रहा है। यह दृश्य ऐसा लगता है, जैसे पाखंडीयों के बेकार विवाद के कारण ग्रंथ लुप्त हो जाते हैं।
  • कवि कहते हैं कि बारिश में चारों दिशाओं से आती हुई मेंढकों की आवाज़ ऐसी लगती है मानो विद्यार्थियों का समूह वेद-पाठ कर रहा हो। अनेक वृक्षों पर नई कोंपलें आ गई हैं, जैसे कि साधना करने वाले व्यक्ति का मन ज्ञान प्राप्त होने  पर प्रफुल्लित हो जाता है।
  • मदार और जवासा के पौधें पत्तों से रहित हो गए हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है मानों अच्छे शासक के राज्य में दुष्टों का धंधा चला गया हो। अब धूल खोजने पर भी कहीं नहीं मिलती है। जैसे कि क्रोध हमें धर्म से दूर कर देता है, उसी प्रकार बारिश ने धूल को नष्ट कर दिया है।I
  • अनाज से लहलहाती हुई पृथ्वी शोभायमान हो रही है, जैसे उपकार करने वाले व्यक्ति की संपति शोभा पाती है। रात के अंधेरे में जुगनू चारों ओर दिखाई दे रहे हैं, जैसे घमंडियों का समूह एकत्र हो गया है।
  • चतुर किसान अपनी फ़सलों से घास- फूस निकाल कर फेंक रहे हैं, ऐसा लगता जैसे विद्वान लोग मोह, मद व घमंड का त्याग कर रहे हों।
  • बरसात के दिनों में चकवा पक्षी कहीं नहीं दिखाई दे रहा है, जैसे कलियुग में धर्म पलायन कर गया हो।
  • यह पृथ्वी अनेक जीवों से भरी पड़ी है, जैसे अच्छे राजा के राज्य में प्रजा का विकास होता है।
  • यहाँ-वहाँ राही थककर इस तरह ठहरे हुए हैं, जैसे मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होने पर इंद्रियाँ शिथिल हो जाती हैं और वासना की ओर जाना छोड़ देती हैं।
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