बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम अफसोस।
महिमा घटी समुद्र की, रावण बस्यो पड़ोस।।
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बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम अफसोस।
महिमा घटी समुद्र की, रावण बस्यो पड़ोस।।
भावार्थ : रहीम दास कहते हैं कि किसी ओछे बुरे व्यक्ति के साथ बैठकर या किसी भी तरह की कुसंगत में बैठकर अपनी कुशलता की कामना करना व्यर्थ है। बुरे व्यक्तियों की संगत में रहकर बुरे व्यक्तियों का तो कुछ नहीं बिगड़ता लेकिन जो अच्छे व्यक्ति होते हैं, चरित्रवान होते हैं, उनके मान-सम्मान की हानि होती है। रहीम दास कहते हैं कि समुद्र की महिमा निराली है, लेकिन उसके पड़ोस में जब रावण ने जब अपनी लंका बसाई रावण के बुरे कामों की बदनामी समुद्र को भी झेलनी पड़ी।
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