'बस की यात्रा' पाठ गद्य की कौन सी विधा है?
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बस की यात्रा पाठ का सारांश बस की यात्रा हरिशंकर परसाई जी द्वारा लिखा गया एक प्रसिद्ध व्यंग है ,जिसमें उन्होंने यातायात की दुर्व्यस्था पर करारा व्यंग किया है। व्यंग के प्रारंभ में लेखक और चार मित्रों के तय किया कि शाम चार बजे की बस से जबलपुर चलें।
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बस की यात्रा पाठ एक व्यंग्य है।
- बस की यात्रा पाठ के लेखक हरिशंकर परसाई जी है।
- उन्होंने इस पाठ में यातायात की दुर्व्यवस्था पर व्यंग्य किया है।
- लेखक कहते है कि प्राइवेट बस कंपनियों के मालिक खटारा बसें चलाते है, वे यात्रियों की जान से भी खिलवाड़ करने से पीछे नहीं हटते केवल पैसा कामना चाहते है।
- एक बार लेखक को अपने चार मित्रो के साथ जबलपुर की ट्रेन पकड़नी थी। उन्होंने बस से पन्ना तथा उसी कंपनी की बस से सतना जाने का निश्चय किया।
- उन्हें सुबह पहुंचना था। बस की कंपनी के हिस्सेदार भी उसी बस में यात्रा कर रहे थे, उनके अनुसार बस बिल्कुल ठीक थी।
- जैसे ही बस शुरू हुई लेखक को डर लगने लगा कि खिड़की के कांच निकालकर लेखक को घायल न कर दे। बस के पेट्रोल की टंकी में भी छेद हो गया। बस रुक गई।
- बस का एक टायर भी फट गया, जिसे बदलवा लिया गया। लेखक व उनके मित्रों ने सुबह तक पहुंचने की संभावना तो छोड़ ही दी उन्हें लग रहा था कि पूरी जिंदगी इसी बस में न बितानी पड़ जाए।
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