बस की यात्रा’ पाठ की लेखन शैली क्या है? यहाँ लेखक ने किन दुव्र्यवस्थाओं को उजागर किया है?
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‘बस की यात्रा’ पाठ की लेखन शैली व्यंगात्मक लेखन की शैली है।
यह पाठ हरिशंकर परसाई द्वारा लिखा गया एक व्यंग चित्र है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने यातायात की व्यवस्था पर व्यंग किया है। लेखक और उसके चार मित्रों ने एक बस के द्वारा यात्रा करने का निर्णय लिया था। उन्हें अनुमान था कि वे जिस बस सेवा यात्रा करने जा रहे हैं, वह बस उन्हें उनके गंतव्य तक समय पर पहुंचा देगी। कई लोगों ने उन्हें बस से यात्रा न करने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने किसी की बात नहीं मानी और वही हुआ जिसका डर था। बस की हालत बेहद जर्जर होने के कारण उन्हें रास्ते में अनेक तकलीफों का सामना करना पड़ा। उन्हें रास्ते में जो-जो तकलीफ हुई, उसका उन्होंने बड़े व्यंगात्मक और हास्य पूर्ण शैली में वर्णन किया है, जिससे ना केवल यातायात की अव्यवस्थाओं का पता चलता है बल्कि यह व्यंग पाठकों के मन को गुदगुदा भी देता है।
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“ऐसा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।" लेखक को ऐसा क्यों लगा?
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