Hindi, asked by anushka1657, 7 months ago

बस की यात्रा पाठ को पढ़ने के बाद आपको कभी अपने जीवन में की गई किसी यात्रा की बात मन में आयी होगी । याद करके उन यात्रा -वृत्तांत को अपने शबदो में लीखिए ।

please help meee...(class 8)​

Answers

Answered by shivangimannsharma8
48

Answer:

Explanation:

एक बार मुझे अगली सुबह ही दिल्ली पहुंचना था। उस समय रेल उपलब्ध नहीं थी। इसलिए मैंने जालंधर से सुबह 9 बजे बस पकड़ी। बस पूरी तरह भरी हुई थी। मेरे पास बैठने के लिए सीट नहीं थी। भगवान की दया से मेरे पास केवल एक बैग था तथा कोई भारी सामान नहीं था। मैंने उसे ऊपर टांग दिया तथा खुद को संभाले रखने के लिए रॉड को पकड लिया। कंडक्टर ने मुझे आश्वासन दिलाया कि लुधियाना पहुंच कर मुझे सीट मिल जाएगी। फिर बस चल पड़ी। सभी यात्री आराम से बैठे थे। वे घरेलू बातचीत कर रहे थे। तभी एक यात्री ने सिगरेट पीनी शुरू कर दी। खिड़कियां बंद होने के कारण बस के अंदर का वातावरण घुटन भरा हो गया। मुझसे यह सब सहन नहीं हो रहा था, किन्तु मेरे पास दूसरा कोई रास्ता भी नहीं था। कुछ ओर लोग भी खड़े थे। बस पूरी तेजी से चल रही थी। यात्री झपकियां लेने लगे। मुझे अब थकावट महसूस होने लगी। जब लुधियाना पहुंच कर बस रुकी तो कुछ यात्री वहां उतर गए। कंडक्टर ने मुझे सीट दिलवाई। मुझे चैन की सांस आई। मैंने अपनी सीट के पास वाली खिड़की खोली। ताज़ी हवा चलने लगी। मैंने ठंडी हवा में सांस लेकर आराम महसूस किया। कुछ देर में बस फिर से चल पड़ी। मुझे पता ही न चला मैं कब गहरी नींद में चला गया। अचानक जब मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि हम दिल्ली में दाखिल हो चुके हैं। इस प्रकार यह सफर आरामदायक रहा। मुझे इस बात की खुशी थी कि मैं अपनी मंज़िल तक सही सलामत पहुंच गया।

Answered by Krishnasongs
14

Answer:

एक बार मुझे अगली सुबह ही दिल्ली पहुंचना था। उस समय रेल उपलब्ध नहीं थी। इसलिए मैंने जालंधर से सुबह 9 बजे बस पकड़ी। बस पूरी तरह भरी हुई थी। मेरे पास बैठने के लिए सीट नहीं थी। भगवान की दया से मेरे पास केवल एक बैग था तथा कोई भारी सामान नहीं था। मैंने उसे ऊपर टांग दिया तथा खुद को संभाले रखने के लिए रॉड को पकड लिया। कंडक्टर ने मुझे आश्वासन दिलाया कि लुधियाना पहुंच कर मुझे सीट मिल जाएगी। फिर बस चल पड़ी। सभी यात्री आराम से बैठे थे। वे घरेलू बातचीत कर रहे थे। तभी एक यात्री ने सिगरेट पीनी शुरू कर दी। खिड़कियां बंद होने के कारण बस के अंदर का वातावरण घुटन भरा हो गया। मुझसे यह सब सहन नहीं हो रहा था, किन्तु मेरे पास दूसरा कोई रास्ता भी नहीं था। कुछ ओर लोग भी खड़े थे। बस पूरी तेजी से चल रही थी। यात्री झपकियां लेने लगे। मुझे अब थकावट महसूस होने लगी। जब लुधियाना पहुंच कर बस रुकी तो कुछ यात्री वहां उतर गए। कंडक्टर ने मुझे सीट दिलवाई। मुझे चैन की सांस आई। मैंने अपनी सीट के पास वाली खिड़की खोली। ताज़ी हवा चलने लगी। मैंने ठंडी हवा में सांस लेकर आराम महसूस किया। कुछ देर में बस फिर से चल पड़ी। मुझे पता ही न चला मैं कब गहरी नींद में चला गया। अचानक जब मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि हम दिल्ली में दाखिल हो चुके हैं। इस प्रकार यह सफर आरामदायक रहा। मुझे इस बात की खुशी थी कि मैं अपनी मंज़िल तक सही सलामत पहुंच गया।

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