बसो मोरे नैनन में नँदलाल।।
/ मोहनि मूरति साँवरी सूरति नैना बने बिसाल॥
मोर मुकुट, मकरांकृत कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल।
अधर सुधारस मुरली राजति, उर बैजंती माल ॥
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीराँ प्रभु सन्तन सुखदाई, भगत बछल गोपाल॥२॥
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भावार्थ - है नंद के लाल कृष्ण ! आप मेरी आंखो में निवास करो । आपके मोर पंख का मुकुट, कानो में कुण्डल और मस्तक पर सुनहरी तिलक सोभायमान है । आपके नयन विशाल है । तथा आपकी सांवली और मन को मोहने वाली छबि है। होठों पर सुधा रस :अमृतः बरसाने वाली बांसुरी है और गले में वैजयंती माला :विष्णु की माला विशेष हैः मीरा के भगवान संतो को सुख देने वाले और भक्तों के प्रिय गोपाल है।
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(ग) भक्तः कुत्र गन्तुम् इच्छति?
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