Hindi, asked by khansaquib320, 1 year ago

बस्ते के बोझ तले सिसकता बचपन निबंध

Answers

Answered by bhatiamona
2

                              बस्ते के बोझ तले सिसकता बचपन निबंध

Answer:

यह वाक्य बच्चों की स्कूल को ले जाते हुए भरे हुए बस्ते के बारे बताया है |

कैसे छोटे बच्चे बचपन से बस्ते के बोझ के नीचे दब जाते है | स्कूल जाना और आ कर पढ़ाई करनी बस यही बोझ सा बन जाता है | बच्चे थक जाते है | बच्चों को स्कूल और घर आने में ही थक जाते है , बच्चा फिर पढ़ाई कब करेगा ?  

स्कूल में अध्यापकों विचार करना चाहिए , बच्चों को किताबें कम करनी चाहिए | बच्चों को किताबी कीड़ा बनाने की बजाए उन्हें और प्रतियोगिता के बारे में बताना चाहिए | जिससे बच्चों को ज्ञान मिले और उनका दिमाग प्रतियोगिता के लिए चले| बच्चों को सब विषय का ज्ञान होना चहिए | किताबी कीड़ा बनने से आज कल कुछ नहीं होता | बच्चों को आज कल तेज़ होना बहुत जरूरी है |

Answered by shishir303
0

मैं एक बस स्टॉप के पास से गुजर रहा था तो देखा कि कुछ स्कूल के बच्चे बस के इंतजार में खड़े थे। सारे बच्चो की पीठ पर भारी भरकम बस्ते लदे हुये थे। बस्ते के बोझ के तले वो आराम से खड़े भी नही हो पा रहे थे। इस बात ने मुझे सोचने को मजबूर दिया कि क्या बस्ते के बोझ ने मासूम बच्चों का बचपन छीन लिया है।

मैंने घर आकर अपनी दस वर्षीय बेटी की हालत पर गौर किया उसकी हालत भी कमोबेश वैसी ही थी जैसी उन बच्चों की थी। अभी तक काम की व्यस्तता के कारण मेरा इस पर ध्यान नही गया क्यों मैं एकदम सुबह ही अपने ऑफिस को निकल जाता था।

मैंने अपनी बेटी का बस्ता चेक किया तो हैरान रह गया। किताबों का ढेर, हर विषय की दो या तीन नोटबुक, प्रोजेक्ट, टिफिन, पानी की बोतल, स्पोर्ट्स किट इत्यादि।

मुझे अपना समय याद आ गया कि कैसे हम चंद जरूरी पाठ्य पुस्तकों और नोटबुक को हम अपने बस्ते में ले जाते थे। हल्का-फुल्का बस्ता होता था और मस्ती से स्कूल जाते।

आजकल के बच्चों पर कितना दवाब है। उन्हे मल्टीटास्किंग तत्व में बदला जाने लगा है और इसके लिये उन्हे अपने साथ ढेर सारा सामान लेकर चलना पड़ता है।

मेरी राय में आज शिक्षा के स्वरूप में बदलाव की आवश्यकता है। मासूम बच्चों पर अत्याधिक बोझ न डालकर उन्हें स्वाभाविक रूप से बढ़ने दिया जाये।

Similar questions