budhi kaki me vyakt ki samasya ko aaj ke sandarbh me vyakt kare
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'बूढ़ी काकी' कहानी मुंशी प्रेमचन्द के द्वारा लिखी है |
यह एक कहानी 'बूढ़ी काकी' और उसके गोद लिए हुए भतीजे और बहु की है जो 'बूढ़ी काकी' पर चिलाते रहते और खाना समय से नहीं देते थे |
इस कहानी में रूपा स्वभाव से तीव्र थी सही, पर ईश्वर से डरती थी। रूपा स्वभाव से गुस्से वाली थी , बात-बात पर चिलाती थी |
आज के समय में हर घर में 'बूढ़ी काकी' जैसी कहानी है | आज के बच्चे अपने बुज़ुर्ग माता-पिता का ध्यान नहीं रखते , उन्हें अपना समय नहीं देते है | घर में अकेले छोड़ कर अपने काम पर चले जाते है | बहुत से लोग तो उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ देते है | अपने बच्चे ही अपने हो कर माता-पिता का ध्यान नहीं रखते है |
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