बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं, फल लागें अति दूर।
सिष को ऐसा चाहिए, गुरु को सब कुछ देय ।
गुरु को ऐसा चाहिए, सिष से कुछ नहिं लेय॥
कबिरा संगत साधु की, ज्यों गंधी की बास।
जो कुछ गंधी दे नहीं, तो भी बास सुबास ।।
दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय ।
बिना जीव कीस्वाँस से, लोह भसम है जाय॥
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this poem is written by Kabir das
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Kabir das is lekhak this doha
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