बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं और सूक्ष्म जल परियोजनाओं में क्या अंतर है
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जागरण संवाददाता, देहरादून: सूक्ष्म एवं अति लघु जल विद्युत परियोजना पहाड़ से पलायन रोकने में अहम भूमिका निभा सकती है। साथ ही इससे प्रदेश का बिजली संकट भी कम हो सकता है। छोटी परियोजनाओं से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा और स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा। यह बातें 'सूक्ष्म एवं अति लघु जल विद्युत प्रोद्योगिकी' विषय पर हुई कार्यशाला में विशेषज्ञों ने कहीं। कार्यशाला में कई राज्यों के विषय विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया।
हरिद्वार बाइपास रोड स्थित एक होटल में हुई कार्यशाला का शुभारंभ मुख्य अतिथि यूनिडो भारत सरकार के सलाहकार डॉ. एनपी सिंह ने किया। उन्होंने नहरों से विद्युत उत्पादन करने की विभिन्न देशों में मौजूद तकनीकी के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में इसकी अपार संभावनाएं हैं। अपर सचिव वैकल्पिक ऊर्जा टीकम सिंह पंवार ने कहा कि राज्य सरकार ग्राम पंचायतों में सूक्ष्म परियोजना लगा रही है। पंचायतों के पार्टनर ऊर्जा निगम, जल विद्युत निगम और उरेडा बन रहे हैं। इससे ग्राम पंचायत की आर्थिकी सुधरेगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और पहाड़ से पलायन भी रुकेगा। कार्यशाला में केरल, मेघालय, हिमाचल, नागालैंड और उत्तर प्रदेश से आए ऊर्जा विशेषज्ञों ने जल विद्युत उत्पादन की विभिन्न तकनीकों की जानकारी दी। कार्यशाला में अपर सचिव सिंचाई किशननाथ, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय भारत सरकार के सलाहकार बीके भट्ट, उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विकास अभिरकरण (उरेडा) के मुख्य परियोजना अधिकारी एके त्यागी, आइआइटी रुड़की से प्रोफेसर अरुण कुमार आदि मौजूद रहे। कार्यशाला का आयोजन उरेडा, यूनिडो, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय भारत सरकार और ग्राफिक एरा विवि की ओर से किया गया।