बड़े पैमाने पर पशुओं को पालना
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पशुधन आम तौर पर जीविका अथवा लाभ के लिए पाले जाते हैं। पशुओं को पालना (पशु-पालन) आधुनिक कृषि का एक महत्वपूर्ण भाग है।
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एक या अधिक पशुओं के समूह को, जिन्हें कृषि सम्बन्धी परिवेश में भोजन, रेशे तथा श्रम आदि सामग्रियां प्राप्त करने के लिए पालतू बनाया जाता है, पशुधन के नाम से जाना जाता है। शब्द पशुधन, जैसा कि इस लेख में प्रयोग किया गया है, में मुर्गी पालन तथा मछली पालन सम्मिलित नहीं है; हालांकि इन्हें, विशेष रूप से मुर्गीपालन को, साधारण रूप से पशुधन में सम्मिलित किया जाता हैं।पशुधन आम तौर पर जीविका अथवा लाभ के लिए पाले जाते हैं। पशुओं को पालना (पशु-पालन) आधुनिक कृषि का एक महत्वपूर्ण भाग है। पशुपालन कई सभ्यताओं में किया जाता रहा है, यह शिकारी-संग्राहक से कृषि की ओर जीवनशैली के अवस्थांतर को दर्शाता है।पशुओं को पालने-पोसने का इतिहास सभ्यता के अवस्थांतर को दर्शाता है जहां समुदायों ने शिकारी-संग्राहक जीवनशैली से कृषि की ओर जाकर स्थिर हो जाने का निर्णय लिया। पशुओं को 'पालतू' कहा जाता है जब उनका प्रजनन तथा जीवन अवस्थाएं मनुष्यों के द्वारा संचालित होती हैं। समय के साथ, पशुधन का सामूहिक व्यवहार, जीवन चक्र, तथा शरीर क्रिया विज्ञान मौलिक रूप से बदल गया है। कई आधुनिक फ़ार्म पशु अब जंगली जीवन के लिए अनुपयुक्त हो चुके हैं। कुत्तों को पूर्वी एशिया में लगभग 15,000 वर्ष पूर्व पालतू बनाया गया था, बकरियां तथा भेड़ें लगभग 8000 वर्ष ईपू एशिया में पालतू बनायीं गयी थीं। शूकर अथवा सूअर 8000 वर्ष ईपू पहले मध्य एशिया व चीन में पालतू बनाये गए थे। घोड़े को पालतू बनाये जाने के सबसे प्राचीन प्रमाण लगभग 4000 ईपू से समय से प्राप्त होते हैं।[1]
प्राचीन अंग्रेजी स्रोत, जैसे बाइबल के किंग जेम्स संस्करण, में पशुधन को "कैटल" (मवेशी) द्वारा इंगित किया जाता है न कि "डीयर" (हिरन) के द्वारा, इस शब्द का प्रयोग ऐसे जंगली पशुओं के लिए किया जाता था जो किसी के स्वामित्व में नहीं होते थे। शब्द कैटल की उत्पत्ति मध्यकालीन अंग्रेजी शब्द चैटल से हुई है, जिसका अर्थ सभी प्रकार की व्यक्तिगत चल संपत्तियों से है,
Explanation:
मांस
आहार उपयोगी प्रोटीन तथा ऊर्जा का उत्पादन
डेयरी उत्पाद
स्तनधारी पशुधन का प्रयोग दूध के स्रोत के रूप में होता है, जिसे आसानी से संसाधित करके अन्य डेयरी उत्पादों में परिवर्तित किया जा सकता है, जैसे दही, चीज़, मक्खन, आइस क्रीम, केफीर अथवा क्यूमिस. पशुधन का प्रयोग इस कारण से किये जाने से प्राप्त भोजन ऊर्जा उन्हें काटने से प्राप्त ऊर्जा से कई गुना अधिक होती है।
रेशा (फाइबर)
पशुधन से रेशों/वस्त्रों की एक श्रृंखला का उत्पादन होता है। उदाहरण के लिए भेड़ों तथा बकरियों से ऊन तथा मौहेर प्राप्त होता है; गाय, हिरन तथा भेड़ की खाल से चमड़ा बनाया जाता है; तथा इनकी हड्डियों, खुरों तथा सींगों का भी प्रयोग किया जा सकता है।
उर्वरक
गोबर की खाद का प्रयोग फसल की खेतों में डाल कर उनकी पैदावार को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण कारण है जिससे ऐतिहासिक रूप से पौधे तथा पालतू पशु एक दूसरे से महत्वपूर्ण रूप से जुड़े हुए हैं। गोबर की खाद का प्रयोग दीवालों तथा फर्शों के प्लास्टर में तथा आग जलाने की ईंधन के रूप में भी किया जा सकता है। पशुओं के रक्त हड्डियों का प्रयोग भी उर्वरक के रूप में किया जाता है।
श्रम
घोड़े, गधे तथा याक जैसे पशुओं का प्रयोग यांत्रिक ऊर्जा के लिए किया जा सकता है। भाप की शक्ति से पहले, पशुधन गैर-मानव श्रम का एकमात्र उपलब्ध स्रोत था। इस उद्देश्य के लिए वे आज भी विश्व के कई भागों में प्रयोग किये जाते हैं, जैसे खेत जोतने के लिए, सामान ढुलाई के लिए तथा सैन्य प्रयोग के लिए भी.
भूमि प्रबंधन
पशुओं की चराई को कभी कभी खर-पतवार तथा झाड-झंखाड़ के नियंत्रण के रूप में प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, उन क्षेत्रों में जहां जंगल की आग लगती है, बकरियों तथा भेड़ों का प्रयोग सूखी पत्तियों को खाने के लिए किया जाता है जिससे जलने योग्य सामग्री कम हो जाती है तथा आग का खतरा भी कम हो जाता है।
पशु पालन के इतिहास के दौरान, ऐसे कई उत्पादों का विकास किया गया जिससे उनके कंकालों का प्रयोग किया जा सके तथा कचरे को कम किया जा सके. उदाहरण के लिए, पशुओं आतंरिक अखाद्य अंग, तथा अन्य अखाद्य भागों को पशु भोजन तथा उर्वरक में बदला जा सकता है। अतीत में, इस तरह के अपशिष्ट उत्पादों को कभी-कभी पशुओं के भोजन के रूप में भी खिलाया गया है। हालांकि, अंतर-प्रजाति पुनर्चक्रण (intra-species recycling) बीमारियों का खतरा प्रस्तुत करता है, जिससे पशु एवं यहां तक कि मनुष्य भी खतरे में आ जाते हैं (बोवाइन स्पौंजीफॉर्म एंकेफैलोपैथी (बीएसई), स्क्रैपी व प्रायन देखें). मुख्य रूप से बीएसई (मैड काऊ डिज़ीज़) के कारण पशु अवशिष्ट को पशुओं को खिलाया जाने पर अनेक देशों में रोक लगा दी गयी है, कम से कम जुगाली करने वाले पशुओं तथा सूअरों पर तो यह रोक है ही.
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