बढ़ती हुई जनसंख्या का मनुष्य जीवन पर प्रभाव'
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जनसंख्या वृद्धि किसी भी क्षेत्र में लोगों की संख्या बढ़ने को कहा जाता है। पूरे दुनिया में मनुष्य की जनसंख्या हर साल लगभग 8.3 करोड़ या 1.1% की दर से बढ़ती जा रही है। वर्ष 1800 को पूरे विश्व की जनसंख्या लगभग एक अरब थी, जो 2017 तक बढ़ कर 7.6 अरब हो गई है। आगे भी इसकी संख्या में बढ़ाव की ही उम्मीद है और ये अंदाजा लगाया गया है कि 2030 के मध्य तक ये आबादी 8.6 अरब हो जाएगी और 2050 तक 9.8 अरब तक हो जाएगी। 2100 तक इसकी आबादी 11.2 अरब तक हो सकती है।
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गोड्डा : बढ़ती जनसंख्या से परिस्थितियां प्रतिकूल हो रही है। प्रतिवर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। मकसद लोगों को जनसंख्या वृद्धि से हो रहे परेशानी से अवगत कराना होता है। जिले में भी हाल के दशक में जनसंख्या वृद्धि तेजी से हुई है जिसका असर संसाधन के साथ विकास पर पड़ रहा है। बेरोजगारी बढ़ रही है। बढ़ती जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति कृषि जोत कम हो रही है। मौजूदा समय में सांख्यिकी विभाग के आकलन के अनुमान जिले की जनसंख्या 15 लाख के पार हो चुकी है। बढ़ती जनसंख्या अब लोगों के जीवन में कई तरह की समस्या उत्पन्न कर रही है। इसके कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्याधिक दोहन हो रहा है, पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है। नियंत्रित जनसंख्या से जहां विकास की गति तेज होती है, वहीं पर्यावरण संरक्षित रहने के साथ ही लोगों की जरूरतें पूरी होने में परेशानी नहीं होती है। लेकिन वर्तमान स्थिति इसके विपरित है। जमीन नहीं बढ़ रही है लेकिन जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। प्रौद्योगिकी ने मानव को पृथ्वी पर जीवित रहने व आगे बढ़ने में मदद की है। इसमें पर्यावरण ने भी फलने फूलने का साधन दिया है। दूसरी ओर प्रौद्योगिकी के गलत उपयोग से वन्य जीवन नष्ट हो रहे हैं। वहीं संसाधनों का दोहन बढ़ रहा है। जानकार मानते है अगर समय रहते जनसंख्या नियंत्रण नहीं हुआ तो गंभीर समस्या लोगों को झेलनी पड़ेगी।
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जनसंख्या वृद्धि से लोगों की दैनिक दिनचर्या हो रही प्रभावित गोड्डा जिले में पिछले दो से तीन दशक से जनसंख्या वृद्धि का दुष्प्रभाव साफ देखा जा सकता है। शहरी आबादी तेजी से बढ़ी है। लोगों की जरूरत को पूरी करने के लिए निर्माण कार्य तेज हुए हैं। इसके कारण कई तरह की समस्या हो रही है। जल, जंगल, जमीन घटती जा रही है। नदी से बालू का दोहन हो रहा है। तीन दशक पूर्व गोड्डा शहर में कभी जाम की स्थिति नहीं रहती थी लेकिन बढ़ती जनसंख्या कारण लोग दो पहिया से लेकर बड़े वाहनों की बाढ़ आई है। शहर में इससे जाम की समस्या बढ़ी है। वहीं सड़क दुर्घटना में भी वृद्धि हुई है। शहर में 2009 से नो इंट्री व्यवस्था लागू की गयी। जबकि 2000 के आसपास कम आबादी व वाहन के कारण ऐसी स्थिति नहीं थी इसके कारण वायू प्रदूषण बढ़ते जा रहे है। जल प्रदूषण की भी समस्या है। लोगों की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही है। जलसंकट से पूरा जनमानस जूझ रहा है। युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा है। आबादी के हिसाब से सड़क, भवन सहित अन्य आधारभूत संरचनाओं के निर्माण में वृद्धि हुई है। पेड़ काटे जा रहे हैं साथ ही प्रति व्यक्ति कृषि भूमि कम हो रही है। जानकार मानते है कि सामाजिक असमानता के कारण आने वाले दिनों में समस्याएं गहराएगी। ऐसे में समय रहते जनसंख्या नियंत्रण पर अंकुश लगाना समय की मांग है।
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जनसंख्या वृद्धि के कारण पर्यावरण पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। इसके कारण जंगल पर आबादी का अधिक बोझ बढ़ा है। जैव विविधता को बनाए रखने के लिए जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण जरूरी है। वन अधिकार अधिनियम की समीक्षा होनी चाहिए। यह पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जरूरी है। लोगों की जरूरत पूरी करने के लिए प्राकृतिक संसाधन का दोहन कम से कम हो। इसके साथ ही सरकार को चाहिए कि जनसंख्या वृद्धि का पर्यावरण पर कितना कुप्रभाव पड़ रहा है या पड़ने वाला है इस पर भारत सरकार समय समय पर समीक्षा करे। -राम भरत, सेवानिवृत वन संरक्षण, गोड्डा।
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जनसंख्या पर नियंत्रण जरूरी है लेकिन प्राकृतिक तरीके से नियंत्रण होने चाहिए ताकि कोई दुष्प्रभाव न हो। बढ़ती जनसंख्या से कई समस्या आ रही है जमीन नहीं बढ़ रहे है प्राकृतिक संसाधन का दोहन हो रहा है सरकार को चाहिए इसके लिए योजना बनना चाहिए इसके साथ ही बेरोजगारों के लिए भी योजना बनाकर उसे रोजगार बनना चाहिए। - रतन महतो, सेवा निवृत्त मौसम वैज्ञानिक।
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