बढ़ती तकनीक और नैतिक दुविधा debate for or against
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बढ़ती तकनीक और नैतिक दुविधा
किसी भी समाज के विकास के लिए तकनीक का विकास जरूरी है और तकनीकी विकास से समाज में विकास की गति को तीव्रता मिलती है। तकनीक के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। तकनीक के प्रयोग से मानव अपने जीवन को ना केवल सुगम बनाता है बल्कि जीवन के अनेक कठिनाइयों को दूर करके जीवन का पूर्ण आनंद उठाता है। तकनीक विकास की राह में एक तीव्रगामी वाहन के समान है जो हमें हमारी विकास रूपी मंजिल की ओर तेज गति से ले जाती है।
तकनीक का जितना महत्व है, उतना ही उसके सही व गलत पक्ष भी हैं। तकनीक का सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों हो रहा हैस इसके लिए ऐसे में यह नैतिक दुविधा उत्पन्न हो जाती है कि तकनीक को किस तरह प्रयोग में लाया जाए कि उसके सकारात्मक रूप को ही उपयोग किया जा सके और उसके नकारात्मक प्रभाव से
से बचा जा सके।
उदाहरण के लिए सोशल मीडिया तकनीक विकास का सबसे बड़ा साक्ष्य है। सोशल मीडिया के जहां सदुपयोग हैं, लोग एक दूसरे से जुड़ते हैं। अनजान लोग एक दूसरे के मित्र बनते हैं अपने दुःख-दर्द शेयर करते हैं, अपने विचार शेयर करते हैं। इससे विश्व एक वैश्विक गांव में तब्दील हो जाता है। वहीं सोशल मीडिया के दुरुपयोग भी हैं। यह नफरत फैलाने का माध्यम बन गया है। यह अफवाह फैलाने का माध्यम भी बन गया हैष जिससे समाज में भ्रम की स्थिति पैदा होती है और सामाजिक शांति बिगड़ने की संभावना हो जाती है।
इसके लिए आज यह नैतिक दुविधा की स्थिति आ गई है कि तकनीक का उपयोग किस तरह किया जाए। कोई ऐसा निश्चित मापदंड नहीं हो पाया है कि जिससे पता चले कि तकनीक का यह सकारात्मक और ये नकारात्मक उपयोग है। लेकिन हम अपने विवेक से काफी कुछ निर्णय कर सकते हैं कि हम तकनीक को उतना ही आजमाएं जो हमारे व्यक्तिगत जीवन में ज्यादा दखल ना दें। हम तकनीक पर जरूरत से अधिक निर्भर ना रहें और पारंपरिक और प्राकृतिक जीवन को जीने की तरफ भी ध्यान दें, वह प्राकृतिक जीवन जो हम सदियों से जीते आए हैं। तभी हम इस नैतिक दुविधा की स्थिति को दूर कर सकते हैं।