Bundelkhandi bhasha ka shetra?
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बुन्देलखण्ड का पौराणिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक दृष्टि से अपना अलग ही महत्व है। धसान, पार्वती, सिन्धु, बेतवा, चम्बल, यमुना, नर्मदा, केन, टोंस और जामनेर नामक दस नदियों से युक्त इस खण्ड को ‘दशार्ण’ भी कहा गया। बुन्देलखण्ड का ऐतिहासिक अध्ययन करने पर ज्ञात होता है इसे पहले कई नामों से जाना गया, कालान्तर में गहरवारवंशीय हेमकर्ण पंचम के द्वारा अपना स्वयं का नाम बुन्देला रखने के बाद तथा उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी शासन के उपरान्त इस खण्ड का नामकरण “बुन्देलखण्ड” हो गया। बुन्देलखण्ड को कई महापुरुषों ने, वीरों ने, गुरुओं ने अपनी कला भूमि के रूप में ख्याति दिलाई। आदिकवि वाल्मीकि, वेद व्यास, द्रोणाचार्य आदि गुरु इसी भूमि पर उत्पन्न हुए। वहीं यह खण्ड आल्हा-ऊदल छत्रसाल-हरदौल लक्ष्मीबाई की यह वीर भूमि बना। सूर-तुलसी, केशव-भूषण, ईसुरी गुप्त आदि कवियों की यह तपोभूमि बना।
बुन्देलखण्ड का लोक जीवन अधिक सरस है। यहाँ व्यक्ति में अहं की भावना समाप्त हो जाती है तथा मैं के स्थान पर हम की भावना उदित होती है। यहाँ लोक में चलना, उठना, बोलना, नृत्य करना, संस्कार परक गीतों में सहभागिता सब साथ चलता है। बुन्देलखण्ड की बोली बुन्देली है। जिसका विकास कई भौगौलिक, सांस्कृतिक, आर्थिक कारणों से अलग- अलग दिशाओं में हुआ है। आदर्श बुन्देली का स्वरूप मध्य क्षेत्र में ही देखने को मिलता है। बुन्देली बोली अपने आप में समृद्ध है जिससे यह एक भाषा का रूप ग्रहण करने में सक्षम है। इसकी कई उपबोलियाँ हैं। लोधांती, पवारी, खटोला, बनाफरी, लोधी, छिंदवाड़ा बुन्देली, नागपुरी हिन्दी आदि। राजनैतिक दृष्टि से बुन्देलखण्ड के अंतर्गत निम्न जिले आते हैं—
उत्तरप्रदेश—जालौन, हमीरपुर, बांदा, झाँसी।
मध्यप्रदेश—टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दमोह, सागर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, भिण्ड, दतिया, ग्वालियर, शिवपुरी, मुरैना, गुना, विदिशा, रायसेन।
बुन्देलखण्ड की संस्कृति यहाँ के लोगों में रचीबसी है। आधुनिक परिवेश के लगातार संपर्क में रहने के बावजूद न केवल महिलाएँ बल्कि पुरुष व बच्चे भी संस्कृति से ओत-प्रोत हैं। यहाँ के लोकमानस में कर्म के प्रति आस्था का भाव, वीरों का सम्मान कूट-कूट कर भरा है। यहाँ के लोगों में त्याग, तपस्या व परोपकार जैसे मूल्य जीवन में उच्च स्थान पर रखे जाते हैं।
बुन्देलखण्ड में युगों युगों से चली आ रही मान्यताओं परम्पराओं का निर्वाह किया जाता है। समय के साथ लोग इसमें आवश्यक परिवर्तन या सुविधानुसार फेरबदल कर लेते हैं। इस अंचल में भक्ति के साथ प्रेम, शान्ति, मनुष्यत्व तथा भाईचारे जैसे लोक मूल्यों ने अपनी गहरी पैठ बनाई है। यहाँ की संस्कृति की अस्मिता को बचाए रखने में लोकधर्म की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है। सभी अपनी मान्यताओं के साथ साथ स्थानीय देवी देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं। विशेष आयोजनों पर होने वाले उत्सवों में यहाँ के लोकगीत, लोक नृत्य, लोक कलाओं के प्रदर्शन का भी चलन है। प्रत्येक छोटी-बड़ी रस्मों, रिवाजों के लिए गीत, कहावतें प्रचलित हैं। पारम्परिक परिधानों से युक्त लोग यहाँ के ब्रत-पर्व भी अधिक हर्षोल्लास के साथ मनाते है।
बुन्देलखण्ड भाषिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से एक व्यापक विषय है। ऐतिहासक विवेचन तथा वर्तमान स्थिति के अध्ययन से बुन्देलखण्ड की भाषा व संस्कृति पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट किया जा सकता है।
जब किसी क्षेत्र की भाषा प्रभावित होती है तो वहाँ की संस्कृति को बचाए रखना भी कठिन हो जाता है। बुन्देली को किन भाषाओं ने अधिक प्रभावित किया है, यहाँ की संस्कृति की अस्मिता को बनाए रखने में किन कारकों का महत्वपूर्ण योगदान है। इन सभी तथ्यों का गहन अध्ययन आवश्यक है अतः बुन्देलखण्ड के भौगौलिक अध्ययन के साथ साथ यहाँ की भाषा पर भी अध्ययन करना आवश्यक है, क्योकि भाषा समाज का दर्पण होती है।