bunye सम भगत का सिद्धांत क्या है
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भगत सिंह को फांसी दिए जाने के बाद उनके समर्थकों के आक्रोश पर महात्मा गांधी की क्या राय थी?
24 मार्च, 1931 के दिन या भगत सिंह को फांसी दिए जाने की अगली सुबह गांधी जैसे ही कराची (आज का पाकिस्तान) के पास मालीर स्टेशन पर पहुंचे, तो लाल कुर्तीधारी नौजवान भारत सभा के युवकों ने काले कपड़े से बने फूलों की माला गांधीजी को भेंट की. स्वयं गांधीजी के शब्दों में, ‘काले कपड़े के वे फूल तीनों देशभक्तों की चिता की राख के प्रतीक थे.’ 26 मार्च को कराची में प्रेस के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा - ‘मैं भगत सिंह और उनके साथियों की मौत की सजा में बदलाव नहीं करा सका और इसी कारण नौजवानों ने मेरे प्रति अपने क्रोध का प्रदर्शन किया है. ...ये युवक चाहते तो इन फूलों को मेरे ऊपर बरसा भी सकते थे या मुझ पर फेंक भी सकते थे, पर उन्होंने यह सब न करके मुझे अपने हाथों से फूल लेने की छूट दी और मैंने कृतज्ञतापूर्वक इन फूलों को लिया. बेशक, उन्होंने ‘गांधीवाद का नाश हो’ और ‘गांधी वापस जाओ’ के नारे लगाए और इसे मैं उनके क्रोध का सही प्रदर्शन मानता हूं.’
लेकिन इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने आगे कहा था- ‘आत्म-दमन और कायरता से भरे दब्बूपने वाले इस देश में हमें इतना अधिक साहस और बलिदान नहीं मिल सकता. भगत सिंह के साहस और बलिदान के सामने मस्तक नत हो जाता है. लेकिन यदि मैं अपने नौजवान भाइयों को नाराज किए बिना कह सकूं तो मुझे इससे भी बड़े साहस को देखने की इच्छा है. मैं एक ऐसा नम्र, सभ्य और अहिंसक साहस चाहता हूं जो किसी को चोट पहुंचाए बिना या मन में किसी को चोट पहुंचाने का तनिक भी विचार रखे बिना फांसी पर झूल जाए.’
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hn ji good morning
hn ji bdiya h aur sunao
agar aap instagram chalati ho toh ye meri id devesh_sharma_001