bus bahoth ho chuka poem written by omprakash valmikhy
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Answer:
जब भी देखता हूँ मैं
झाड़ू या गन्दगी से भरी बाल्टी
कनस्तर
किसी हाथ में
मेरी रगों में
दहकने लगते हैं
यातनाओं के कई हज़ार वर्ष एक साथ
जो फैले हैं इस धरती पर
ठंडे रेत-कणों की तरह
वे तमाम वर्ष
वृत्ताकार होकर घूमते हैं
करते हैं छलनी लगातार
उँगलियों और हथेलियों को
नस-नस में समा जाता है ठंडा ताप
झाड़ू थामे हाथों की सरसराहट
साफ़ सुनाई पड़ती है भीड़ के बीच
बियाबान जंगल में सनसनाती हवा की तरह
गहरी पथरीली नदी में
असंख्य मूक पीड़ाएँ
कसमसा रही हैं
मुखर होने के लिए
रोष से भरी हुई
बस्स,
बहुत हो चुका चुप रहना
निरर्थक पड़े पत्थर
अब काम आएँगे
संतप्त जनों के!!
Explanation:
I know it is hindi sorry about that
cause originally it is in hindi
Answer:
जब भी देखता हूँ मैं
झाड़ू या गन्दगी से भरी बाल्टी
कनस्तर
किसी हाथ में
मेरी रगों में
दहकने लगते हैं
यातनाओं के कई हज़ार वर्ष एक साथ
जो फैले हैं इस धरती पर
ठंडे रेत-कणों की तरह
वे तमाम वर्ष
वृत्ताकार होकर घूमते हैं
करते हैं छलनी लगातार
उँगलियों और हथेलियों को
नस-नस में समा जाता है ठंडा ताप
झाड़ू थामे हाथों की सरसराहट
साफ़ सुनाई पड़ती है भीड़ के बीच
बियाबान जंगल में सनसनाती हवा की तरह
गहरी पथरीली नदी में
असंख्य मूक पीड़ाएँ
कसमसा रही हैं
मुखर होने के लिए
रोष से भरी हुई
बस्स,
बहुत हो चुका चुप रहना
निरर्थक पड़े पत्थर
अब काम आएँगे
संतप्त जनों के
Explanation:
hope it helps